अक्सर देखा गया है कि जब किसी मरीज को दर्द, जकड़न या किसी प्रकार की मांसपेशीय या जोड़ों से जुड़ी समस्या होती है, तो सबसे पहले वह दवाइयों, इंजेक्शन या कभी-कभी सर्जरी तक की राह अपनाता है। लेकिन Physiotherapy की सलाह को वह शुरुआत में गंभीरता से नहीं लेता। उसके मन में यह भ्रम बना होता है कि—
“फिजियोथेरेपी से क्या फायदा होगा?”, “यह तो सिर्फ एक्सरसाइज़ ही है”, या “इतना टाइम किसके पास है रोज़ फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाने का?”
लेकिन धीरे-धीरे जब दर्द बढ़ता है, दवाइयों का असर खत्म होने लगता है, और जीवन की सामान्य गतिविधियाँ जैसे चलना, उठना, झुकना, या रात को नींद लेना तक मुश्किल होने लगती हैं — तब उसे अहसास होता है कि अब असली इलाज की ज़रूरत है, अब कुछ ऐसा चाहिए जो जड़ से ठीक करे। और यही वह मोड़ होता है जब मरीज को अपनी “मजबूरी” फिजियोथेरेपी की ओर ले आती है।
जब वह पहली बार सही फिजियोथेरेपिस्ट से उपचार लेना शुरू करता है, तो धीरे-धीरे उसके शरीर में सुधार महसूस होता है। दर्द घटने लगता है, हिलना-डुलना आसान लगने लगता है, और वह जो महीनों से निराशा महसूस कर रहा था — उसमें उम्मीद लौट आती है। धीरे-धीरे जो विश्वास मजबूरी से शुरू हुआ था, वह आस्था और भरोसे में बदल जाता है।
यही फिजियोथेरेपी की सबसे बड़ी ताकत है — यह केवल दर्द नहीं मिटाती, यह मरीज के “सोचने का नजरिया” भी बदल देती है। मरीज को समझ आता है कि शरीर को ठीक करने के लिए सिर्फ दवा नहीं, सही मूवमेंट और सही मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है।
Physiotherapy में science, logic और patience का मेल होता है। यह ऐसा उपचार है जो व्यक्ति को अपने शरीर की healing power पर भरोसा करना सिखाता है। और फिर वही मरीज, जो पहले फिजियोथेरेपी को अनदेखा करता था, आगे चलकर दूसरों को यही सलाह देता है —
“भाई, दवा से नहीं… फिजियोथेरेपी से असली राहत मिलती है”
सार:
👉 मरीज फिजियोथेरेपी पर भरोसा नहीं करता, लेकिन जब बाकी सब उपाय असफल हो जाते हैं — मजबूरी उसे सही रास्ते पर ले आती है।
👉 एक बार जब सुधार शुरू होता है, तो वही मजबूरी “विश्वास” में बदल जाती है।
👉 Physiotherapy सिर्फ इलाज नहीं, जीवन जीने की क्षमता वापस लौटाने की प्रक्रिया है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें