गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

MBBS की सीटों के लिए इतनी मारामारी क्यों होती है, जबकि MBBS डॉक्टर की आय अपेक्षाकृत कम होती है ? — भारतीय लोगों की मानसिकता का विश्लेषण

यह सवाल केवल शिक्षा प्रणाली या आय से जुड़ा नहीं है, बल्कि भारतीय समाज की गहरी मानसिकता, परंपरा, और “status perception” से जुड़ा है।
आइए इसे विस्तार से समझते हैं — जो समाज, मनोविज्ञान और व्यवस्था तीनों को जोड़ता है 👇👇

🩺 विषय:
MBBS की सीटों के लिए इतनी मारामारी क्यों होती है, जबकि MBBS डॉक्टर की आय अपेक्षाकृत कम होती है ? — भारतीय लोगों की मानसिकता का विश्लेषण

🔹 1. “Doctor” = सम्मान और पहचान का प्रतीक:
       भारत में “डॉक्टर बनना” केवल एक पेशा नहीं है, यह एक social title है।
सदियों से डॉक्टर को समाज में “भगवान के बाद” माना गया है — वह व्यक्ति जो जीवन बचाता है। गाँवों और कस्बों में आज भी डॉक्टर को “ऊँचे दर्जे का आदमी” माना जाता है। इसलिए, डॉक्टर बनना परिवार के लिए सामाजिक उन्नति का प्रतीक है, चाहे आय कुछ भी हो।
       बहुत से माता-पिता अपने बच्चों से कहते हैं — “बेटा बस डॉक्टर बन जा, बाकी जिंदगी अपने आप सेट हो जाएगी।” यही “सामाजिक सम्मान” वह मानसिक जड़ है, जो MBBS सीटों के लिए करोड़ों विद्यार्थियों को एक ही परीक्षा में झोंक देती है।

🔹 2. “कमाई नहीं, पहचान चाहिए” वाली मानसिकता:
      कई MBBS डॉक्टरों की शुरुआती आय वाकई बहुत कम होती है। Internship या JR के दौरान ₹20,000–₹60,000 तक मिलते हैं, और PG तक पहुँचते-पहुँचते 10-12 साल बीत जाते हैं। फिर भी समाज इसे “सफल जीवन” मानता है, क्योंकि:
👉🏻MBBS degree को “ultimate qualification” समझा जाता है।
👉🏻मरीज, रिश्तेदार, पड़ोसी — सब “डॉक्टर साहब” कहकर संबोधित करते हैं।
👉🏻यह “identity satisfaction” इतनी प्रबल होती है कि कई डॉक्टर कम आय के बावजूद अपनी सामाजिक स्थिति से खुश रहते हैं।
👉 यानी समाज ने MBBS को “आर्थिक सफलता” से ज्यादा “सामाजिक पहचान” को सफलता का पैमाना बना दिया है।

🔹 3. परिवार का सपना बनाम बच्चे की चाह:
      भारत में बहुत सारे विद्यार्थी MBBS इसलिए नहीं करते कि उन्हें खुद passion है, बल्कि इसलिए कि यह “माता-पिता का सपना” होता है। परिवारों को लगता है कि “अगर बच्चा डॉक्टर बन गया तो पूरी family का नाम रोशन होगा।” यह सपना बचपन से ही बच्चे के मन में डाल दिया जाता है।
नतीजा: लाखों बच्चे NEET में बैठते हैं, भले ही उनका झुकाव किसी और field की ओर हो। यह मानसिक दबाव एक “social competition” बन जाता है — कौन डॉक्टर बन पाया, कौन नहीं।

🔹 4. Medical education = सुरक्षित भविष्य का भ्रम:
     लोगों को लगता है कि MBBS करने के बाद “job security” मिल जाएगी, जबकि हकीकत में आज MBBS doctors भी private sector में असुरक्षा, contract system, और underpayment से जूझ रहे हैं।
सरकारी नौकरियाँ सीमित हैं। Private hospitals में MBBS डॉक्टर “service provider” के रूप में काम करते हैं, न कि मालिक के रूप में। फिर भी समाज को यह illusion है कि “doctor बन गए तो जिंदगी सेट है।”
यह मानसिकता “सुरक्षा का भ्रम” (illusion of security) पैदा करती है।

🔹 5. “Doctor = भगवान” की पारंपरिक सोच:
     भारत में धर्म और चिकित्सा का गहरा संबंध है। आयुर्वेद, पुराणों और लोककथाओं में चिकित्सक को देवतुल्य माना गया है। यह परंपरा अब भी अवचेतन रूप से समाज में जीवित है। इसलिए डॉक्टर का पेशा “पवित्र” माना जाता है। बच्चे को डॉक्टर बनाना कई परिवारों के लिए “पुण्य” जैसा होता है।
👉 यही कारण है कि MBBS को केवल “career” नहीं बल्कि “divine profession” की तरह देखा जाता है।

🔹 6. “Comparative Ego” और समाज में रैंकिंग की मानसिकता:
भारतीय समाज में लोगों की सफलता को हमेशा तुलना (comparison) से मापा जाता है। “पड़ोसी का बेटा डॉक्टर है, हमारा क्यों नहीं?” “इंजीनियर तो हर दूसरा है, लेकिन डॉक्टर बनना बड़ी बात है।” इस तरह की सामाजिक तुलना ने MBBS को “सफलता की सर्वोच्च सीढ़ी” बना दिया है। लोगों के लिए डॉक्टर बनना मतलब “सभी से ऊपर उठ जाना” है।
👉 यह “Ego-driven aspiration” भी मारामारी का बड़ा कारण है।

🔹 7. Health sector के अन्य professions को कमतर आंकने की सोच:
भले ही physiotherapist, occupational therapist, nurse, clinical psychologist, या medical technologist की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण हो — पर समाज की मानसिकता में “doctor ही असली healer” है।
यह सोच MBBS को monopoly देती है।
नतीजा यह कि ---:Health system की “team-based” reality को लोग नहीं समझते। और बाकी professions को “सहायक” या “छोटे doctor” के रूप में देखा जाता है। यह भी MBBS की मांग को असंतुलित रूप से बढ़ाता है।

🔹 8. Government policies और private lobby का प्रभाव:
Medical education बहुत महँगी है। Private colleges और coaching institutes ने MBBS की चाह को “business” बना दिया है। Coaching industry (Kota, etc.) इस सपने को बेचती है। Parents करोड़ों रुपये खर्च कर देते हैं, बस “doctor” शब्द सुनने के लिए। यह एक सामाजिक “trap” है जिसमें भावनाएँ और व्यवसाय एक साथ उलझ गए हैं।

🔹 9. Realisation बहुत देर से आता है:
जब डॉक्टर बन जाते हैं, तब जाकर बहुतों को एहसास होता है कि जीवन का 10–12 साल तो पढ़ाई और training में चला गया। जब तक अच्छी आय आती है, उम्र का बड़ा हिस्सा निकल चुका होता है। और तब समाज, जो सम्मान देता है, वही सम्मान कई बार मेहनत और frustration में बदल जाता है।

🔹 10. निष्कर्ष: मानसिकता का सार:
“भारतीय समाज में “Doctor” शब्द आर्थिक सफलता से नहीं, सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है”
लोगों की सोच कुछ ऐसी है —
“पैसा किसी भी पेशे में मिल जाएगा, पर डॉक्टर बनने से जो पहचान और सम्मान मिलता है, वो कहीं नहीं” “डॉक्टर बनना मतलब खुद से ज़्यादा पूरे परिवार की इज़्ज़त बढ़ाना”
यही सोच MBBS सीटों के लिए भयंकर प्रतिस्पर्धा पैदा करती है, भले ही ground reality में MBBS doctor की आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत न हो।


💬 अंतिम विचार:
आज के समय में यह ज़रूरी है कि समाज और युवा दोनों यह समझें कि — “सफलता” केवल MBBS degree से नहीं आती।
Healthcare system एक team है, सिर्फ doctor नहीं - physiotherapist, nurse, psychologist, pharmacist, technician सब बराबर महत्वपूर्ण हैं।
असली सफलता तब है जब पेशा आपकी रुचि, संतुलन और आत्म-संतोष के अनुरूप हो।

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