🧠 “Blind Faith” की जड़ें कहाँ हैं?
1. डर और असहायता:
बीमारी या दर्द के समय मरीज और परिवार मानसिक रूप से कमजोर होते हैं, इसलिए जो भी "doctor" कहता है, वो उन्हें अंतिम सत्य लगता है।
2. ज्ञान की कमी:
मेडिकल साइंस की तकनीकी भाषा और जटिल प्रक्रियाएँ आम व्यक्ति को समझ नहीं आतीं, इसलिए वो सवाल नहीं पूछते।
3. सामाजिक आदत:
भारतीय समाज में “doctor भगवान के समान है” जैसी सोच पीढ़ियों से चली आ रही है।
4. व्यावसायिक छवि:
बड़े अस्पतालों की चमक-दमक, विज्ञापन और ब्रांड इमेज भी भरोसे का भ्रम पैदा करती है।
⚠️ Blind Faith के परिणाम:
❗गलत diagnosis या अनावश्यक treatment को भी बिना सवाल स्वीकार कर लिया जाता है।
❗Financial exploitation (अनावश्यक टेस्ट, सर्जरी, पैकेज) का खतरा बढ़ जाता है।
❗Physiotherapy, Rehabilitation, या Alternate Management Options को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
❗मरीज की स्वयं की भागीदारी और जागरूकता कम हो जाती है, जिससे recovery प्रभावित होती है।
💡 समाधान: “Blind Faith” नहीं, “Informed Faith”
✔️डॉक्टर से सवाल पूछने का अधिकार मरीज का है।
✔️हर रिपोर्ट, टेस्ट और इलाज का तर्क समझें।
✔️Second opinion लेने में हिचकिचाएँ नहीं।
✔️Evidence-based decision पर भरोसा करें, न कि नाम या दिखावे पर।
✔️Transparency और communication पर जोर दें — यही सही भरोसे की पहचान है।
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