शनिवार, 15 नवंबर 2025

जब इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी से सफेद कोट पहनकर ‘Physiotherapy students’ की फौज निकलती है, तब एक मेडिकल फिजियोथेरेपिस्ट होने के नाते मुझे शर्म भी आती है और इस महान प्रोफेशन के भविष्य की चिंता भी मन को भीतर तक झकझोर देती है

जब इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी से सफेद कोट पहनकर ‘Physiotherapy students’ की फौज निकलती है, तब एक मेडिकल फिजियोथेरेपिस्ट होने के नाते मुझे शर्म भी आती है और इस महान प्रोफेशन के भविष्य की चिंता भी मन को भीतर तक झकझोर देती है


         भारत जैसे विशाल देश में, जहाँ स्वास्थ्य-सेवा की जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं और हर दिन किसी न किसी परिवार को एक सच्चे, कुशल, medically-trained physiotherapist की आवश्यकता पड़ती है, वहीं दूसरी ओर “Physiotherapy” को एक आसान, सस्ती, जल्दी मिलने वाली डिग्री का विकल्प समझकर उसे सस्ते शिक्षा-मॉडल में ढाल देने की जो प्रवृत्ति चल पड़ी है, उसने इस प्रोफेशन की जड़ों को हिला दिया है।
        आज सबसे दर्दनाक दृश्य यह है कि इंजीनियरिंग और जनरल यूनिवर्सिटीज- जहाँ मेडिकल साइंस की बुनियाद, क्लिनिकल सेटअप, अस्पताल एक्सपोज़र, मेडिकल फैकल्टी और एविडेंस-बेस्ड टीचिंग की बुनियादी ज़रूरतें तक मौजूद नहीं- वहाँ से हर साल सफेद कोट पहनकर बड़ी संख्या में “Physiotherapy students” निकल रहे हैं।

      कागज़ पर वे “Graduate” कहलाते हैं, पर वास्तविकता यह है कि उनमें से अधिकांश ने न cadaver देखा होता है, न clinical postings की गहराई समझी होती है, न pathology पढ़ी होती है, न orthopedics और neurology को छुआ भी होता है।
और यही वह क्षण है जहाँ—एक Medical Physiotherapist होने के नाते शर्म भी आती है और भविष्य की चिंता भी मन को भीतर तक झकझोर देती है।

🔴 1. सफेद कोट पहन लेना ‘Medical Science’ नहीं है — मगर आज ऐसा ही हो रहा है:

      सफेद कोट का अर्थ डॉक्टर होना नहीं बल्कि एक ज़िम्मेदारी, एक नैतिक कर्तव्य और एक वैज्ञानिक समझ है। लेकिन जो छात्र मेडिकल सिस्टम से बाहर, science-based clinical exposure के बिना Physiotherapy को केवल एक “विकल्प” या “डिग्री” समझकर जोड़ रहे हैं—वे इस सफेद कोट की पवित्रता को समझ ही नहीं पाते।

कितनी विडंबना है,
कि एक मेडिकल कॉलेज में Physiotherapy सीखने के लिए
– Anatomy dissection hall में सालों पसीना बहाना पड़ता है,
– अस्पताल की वार्डों में घंटों rounds करने पड़ते हैं,
– व्याख्यान नहीं बल्कि real patients पढ़ाते हैं,
– और clinical reasoning वर्षों की training से बनती है।

जबकि दूसरी ओर—एक Engineering University में वही विषय कॉपी-पेस्ट PDF नोट्स और PPT से पढ़ाया जाता है।

❔क्या यह समानता उचित है?
❔क्या यह वैज्ञानिक है?
❔क्या यह न्यायसंगत है?

🔴 2. Physiotherapy कोई “Technical Course” नहीं — एक Medical Clinical Science है:

यह विज्ञान है—
Human Anatomy, Neuro-Physiology, Orthopedics, Cardio-Pulmonary Medicine, Rehabilitation Psychology, Evidence-Based प्रैक्टिस और Clinical Decision Making का विज्ञान।

लेकिन कई institutions इसे Engineering के lab-model की तरह पढ़ा रहे हैं— जैसे यह मशीनें चलाने की Training हो।

     आज सबसे बड़ा खतरा यह है कि Physiotherapy को Technology से जोड़कर, Medical Science से तोड़ा जा रहा है। जबकि वास्तविकता में Physiotherapy का दिल “Manual Clinical Skill” है, न कि short-term gadget training

🔴 3. Quantity बढ़ रही है — Quality गिर रही है, और सबसे अधिक दुख Medical Physiotherapists को है:

आज हर दूसरा College Physiotherapy शुरू कर रहा है—
❌ ना faculty है,
❌ ना hospital है,
❌ ना lab है,
❌ ना medical environment।

पर डिग्री मिल जाती है—
बिना Clinical Exposure के मिलती है।
बिना Proper Medical Supervision के मिलती है।

और market में ऐसे graduates की फौज उतरती है—
❌जो न patient को सही diagnosis दे पाती है
❌न evidence-based reasoning कर पाती है
❌न clinical emergencies समझ पाती है।

⚠️नतीजा जब मरीज को गलत इलाज मिलता है— दोष Physiotherapist को दिया जाता है, चाहे गलती किसी ‘Non-medical’ सिस्टम की क्यों न हो।

🔴 4. इस स्थिति का सबसे बड़ा Psychological Impact — Medical Physiotherapists की पहचान धुंधली हो रही है:

जो Physiotherapist students मेडिकल कॉलेज में—
– dissection करता है,
– डॉक्टरों के साथ ROUNDS लेता है,
– Surgeons के साथ Cases Discuss करता है,
– Icus में काम करता है,
– Evidence-based Protocols Follow करता है…

उसे भी Society उसी नजर से देखती है जैसे किसी ऐसे व्यक्ति को जो कॉपी-पेस्ट नोट्स से “degree” ले आया हो।

यही सबसे बड़ा दर्द है। यही वह जगह है जहाँ शर्म भी आती है और चिंता भी।

क्योंकि society को अंतर बताने का जिम्मा भी Medical Physiotherapist पर है, और System से लड़ाई भी Medical Physiotherapist को ही लड़नी है।

🔴 5. इस स्थिति से मरीज भी प्रभावित होते हैं - और यही सबसे खतरनाक पहलू है:

     जब Poorly Trained Physiotherapy ग्रेजुएटस गलत Diagnoses करते हैं, अनुचित Treatments देते हैं, या Unscientific Approaches अपनाते हैं— तो उसका नुकसान सबसे पहले मरीज़ को होता है।
    नतीजा Physiotherapy का नाम खराब होता है, विश्वास टूटता है, और real professionals की credibility पर धब्बा लगता है।

🔴 6. क्या समाधान है? — रास्ता कठिन है, पर असंभव नहीं:

इस समस्या को हल करने के लिए 4 बड़े परिवर्तन जरूरी हैं:
✔ 1. Physiotherapy को Medical Science के दायरे में वापस लाना इसे engineering या general universities से हटाकर exclusively medical setup में ही चलाया जाना चाहिए।

✔ 2. Medical Physiotherapist की परिभाषा और प्रशिक्षण को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले Qualification में clear differentiation अनिवार्य है।

✔ 3. Regulation strict हो — quantity नहीं, quality पर आधारित हर college के लिए hospital, medical faculty, और clinical postings mandatory हों।

✔ 4. Society को education — कि physiotherapy की क्वालिटी ‘white coat’ से नहीं, training से तय होती है

लोगों को यह समझाना होगा कि हर Physiotherapist एक जैसा नहीं होता।

🔴 7. अंत में — यह लड़ाई केवल शब्दों की नहीं, अस्तित्व की है:

     एक Medical Physiotherapist की आवाज में जो दर्द है, वह केवल व्यक्तिगत पीड़ा नहीं— पूरे प्रोफेशन के भविष्य की पुकार है।
    क्योंकि जब यह प्रोफेशन कमजोर होता है, तो सबसे बड़ा नुकसान- मरीजों का होता है। और जब इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटीज फिजियोथेरेपी की डिग्रियाँ बनाना जारी रखेंगी, तो physiotherapy एक महान medical science नहीं, एक “short-cut course” बनकर रह जाएगी। और यही वह क्षण है— जिसमें शर्म भी आती है और भविष्य की चिंता भी भीतर तक झकझोर देती है।



1 टिप्पणी:

  1. सही कहा सर आपने आज कल यही हो रहा है मैं आपको धन्यवाद देता हूं कि आप सबको इसके बारे में सचेत कर रहे हैं
    डॉ. बृजेश को धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं