आज की चिकित्सा व्यवस्था में एक बहुत गहरी सच्चाई छिपी है —
मरीज Physiotherapist के पास तब पहुँचता है जब शरीर नहीं, सलाहें उसे तोड़ चुकी होती हैं। अधिकतर दर्द, सूजन या कमजोरी का असली कारण चोट नहीं होता, बल्कि गलत मार्गदर्शन, देरी से इलाज और फिजियोथेरेपी की अनदेखी होती है।
Physiotherapist केवल शरीर का नहीं, बल्कि भ्रम से घायल मन और गलत सलाह से टूटे सिस्टम का इलाज करता है।
आइए समझते हैं कि यह साइलेंट ट्रेजेडी कैसे होती है 👇
⚕️ 1. Misguidance की शुरुआत — पहले कदम से ही गलती:
जब किसी व्यक्ति को दर्द या stiffness महसूस होता है, तो वह सबसे पहले डॉक्टर, ऑर्थोपेडिक या केमिस्ट के पास जाता है। और वहीं से misguidance शुरू होता है:
“5 दिन painkiller ले लो।”
“पूरा आराम करो, हिलना नहीं।”
“Physiotherapy की जरूरत नहीं, बाद में देखेंगे।”
इन तीन लाइनों में जो नुकसान होता है, वह महीनों की physiotherapy से ठीक करना पड़ता है। क्योंकि तब तक:
❗मांसपेशियाँ कमजोर हो चुकी होती हैं,
❗जोड़ stiff हो चुके होते हैं,
❗और शरीर की natural healing रुक चुकी होती है।
जो समस्या 5 दिन में ठीक हो सकती थी, अब 5 महीने लेती है।
🧠 2. Medical System में Physiotherapy की गलत समझ:
आज भी बहुत-से डॉक्टर physiotherapy को “इलाज के बाद की exercise” मानते हैं, जबकि असलियत में यह इलाज का हिस्सा है — और recovery का भी ।
Physiotherapist कोई “exercise trainer” नहीं, बल्कि movement scientist होता है — जो शरीर की बायोमैकेनिक्स, न्यूरोफिज़ियोलॉजी और healing process को समझता है।
लेकिन जब डॉक्टर physiotherapist को बराबरी का साथी नहीं, बल्कि “सहायक” समझते हैं, तो होता यह है:-
⚠️Physiotherapy को delay कर दिया जाता है,
⚠️मरीज को गलत सलाह दी जाती है,
⚠️और फिर जब pain chronic हो जाता है, तो कहा जाता है — “अब physiotherapy करा लो।”
तब तक नुकसान हो चुका होता है।
🩻 3. Post-Surgery का सबसे बड़ा उदाहरण — गलत शुरुआत:
मान लीजिए किसी मरीज का Total Knee Replacement (TKR) हुआ।
सर्जरी के बाद उसे सिर्फ़ एक पेज की exercise chart दी गई —
“यह रोज़ करो, सब ठीक हो जाएगा।”
कोई supervision नहीं, कोई muscle balance assessment नहीं, कोई neural control analysis नहीं।
परिणाम:
😕घुटना 60° से ज़्यादा नहीं मुड़ता,
😕thigh muscle कमजोर हो जाती है,
😕मरीज सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाता,
और अंत में मरीज बोलता है — “सर्जरी तो सफल थी, physiotherapy बेअसर रही।”
सच्चाई यह है कि physiotherapy शुरू ही नहीं हुई थी।
🧩 4. गलत सलाह ➡️ नया नुकसान:
जब गलत सलाह इलाज बन जाती है, तब शरीर उसके परिणाम भुगतता है:
⚠️“हिलना नहीं” ➡️ मांसपेशियों का क्षय और joint freeze
⚠️“गरम सेक करते रहो” ➡️ chronic stiffness
⚠️“थोड़ा दर्द है तो चलो, physiotherapy की जरूरत नहीं” ➡️ ligament strain
⚠️“YouTube की exercise से करो” ➡️ गलत posture और re-injury
फिर मरीज Physiotherapist के पास आता है और कहता है —
“डॉक्टर ने तो कहा था सब ठीक हो जाएगा, अब तो और दर्द बढ़ गया।”
🔍 5. Physiotherapist की भूमिका — Healer से ज़्यादा Re-educator:
जब मरीज Physiotherapist के पास पहुँचता है, वह केवल दर्द लेकर नहीं आता, बल्कि गलत सलाह, गलत इलाज और टूटी उम्मीदें लेकर आता है।
Physiotherapist को अब:
🔹गलत immobilization को ठीक करना,
🔹muscle coordination दोबारा बनाना,
🔹posture सुधारना,
🔹और सबसे कठिन — मरीज का “विश्वास वापस लाना” होता है।
हर session सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि re-education और trust rebuilding होता है।
⚙️ 6. Misguidance क्यों होता है — System की खामियाँ:
(a) शिक्षा में असमानता:
कुछ Non-medical universities में physiotherapy बिना medical foundation के सिखाई जाती है। इससे physiotherapist की clinical identity कमजोर हो जाती है और Orthopedics Surgeon को physiotherapist कम विश्वास होता है। जबकी medical physiotherapyists भी होते है जिन्हे post Operative Rehabilitation का अच्छा ज्ञान होता है।
(b) Hierarchy वाली मानसिकता:
कुछ doctors physiotherapist को बराबरी का healthcare professional नहीं मानते, बल्कि “helper” समझते हैं। यह अहंकार collaboration को रोकता है।
(c) मरीज की अज्ञानता:
लोग आज भी physiotherapy को “मालिश या सेक” मानते हैं। जबकि modern physiotherapy है — neuromuscular science, biomechanics और evidence-based rehabilitation.
🧘♀️ 7. मानसिक रूप से घायल मरीज — गलत सलाह का Psychological असर:
गलत सलाह सिर्फ शरीर नहीं, मन को भी तोड़ती है।
मरीज कहने लगते हैं:
“Physiotherapy से फायदा नहीं होता।”
“अब दर्द हमेशा रहेगा।”
“मेरे शरीर में सुधार की क्षमता नहीं बची।”
असलियत यह है — दर्द शरीर में नहीं, भरोसे की कमी में है। Physiotherapist का काम सिर्फ जोड़ों को नहीं, बल्कि मन और आत्मविश्वास को भी heal करना है।
🧬 8. सही Healing Chain — Doctor → Physiotherapist → Patient:
अगर system सही काम करे, तो क्रम ऐसा होना चाहिए:
1. Doctor निदान करे (diagnosis),
2. Physiotherapist कार्यक्षमता (function) बहाल करे,
3. Patient दोनों के बीच समन्वय बनाए।
लेकिन वास्तविकता यह है:
1. Doctor दवा और आराम लिख देता है,
2. Physiotherapist को देर से बुलाया जाता है,
3. Patient chronic pain में फँस जाता है।
System को “integration” चाहिए, “delay” नहीं।
💡 9. हर Physiotherapist का दर्द:
हर medical physiotherapist रोज़ यह सुनता है:
“Doctor ने कहा था physiotherapy की जरूरत नहीं।”
“दवा ली थी तब तक ठीक था , दवा छोड़ने पर अब और दर्द बढ़ गया।”
“और अब ये हालत हो गई कि, चलना मुश्किल हो गया।”
Physiotherapist और मरीज को दो मोर्चों पर लड़ना पड़ता है —
1. शरीर के दर्द से,
2. और सिस्टम की गलतफहमियों से।
🩶 10. निष्कर्ष:
असल में असली दर्द शरीर में नहीं, गलत सलाह में है:
मरीजों को जो सबसे बड़ा नुकसान होता है, वह चोट नहीं — गलत मार्गदर्शन है। Physiotherapist केवल मरीज को ठीक नहीं करता, वह गलत जानकारी के जाल को काटता है।
इसलिए अगली बार जब आप सोचें —
“क्यों मेरा दर्द नहीं गया?”,
तो खुद से पूछिए —
👉 “क्या इलाज सही समय पर शुरू हुआ?”
👉 “क्या physiotherapy को delay किया गया?”
👉 “क्या मैंने सही व्यक्ति से सलाह ली?”
क्योंकि healing सिर्फ़ दवा या मशीन से नहीं होती, बल्कि सही मार्गदर्शन से होती है।
🔶 अंतिम विचार:
“हर गलत सलाह एक नया घाव छोड़ जाती है — कभी शरीर पर, कभी मन पर”
Physiotherapist सिर्फ़ जोड़ों का नहीं, पूरी सोच का इलाज करता है।
जिस दिन system समय पर सही referral देना शुरू करेगा, उस दिन chronic pain नाम की बीमारी आधी रह जाएगी।
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