आज चिकित्सा क्षेत्र में “तकनीक” का नाम सुनते ही मरीजों की आंखों में उम्मीद की चमक आ जाती है। उन्हें लगता है कि अब दर्द से मुक्ति मिल जाएगी, इलाज अधिक सटीक और सुरक्षित होगा, और डॉक्टर की गलती की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी। यही भरोसा आज कई निजी अस्पतालों और कुछ डॉक्टरों के लिए व्यापार का सबसे आसान हथियार बन गया है — और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है “Robotic Knee Replacement Surgery” के नाम पर हो रही अवैध वसूली।
🔹 नाम में “Robotic” जोड़कर बनाई जा रही है झूठी श्रेष्ठता की छवि—
हर मरीज को लगता है कि “रोबोट” यानी मशीन खुद ऑपरेशन करेगी, इंसान की तरह गलती नहीं करेगी। लेकिन सच्चाई यह है कि रोबोट खुद सर्जरी नहीं करता — वह केवल सर्जन की मदद करने वाला एक उपकरण (assistive device) है, जो कुछ तकनीकी माप और मूवमेंट को अधिक सटीक बनाता है।
फिर भी अस्पताल इस “रोबोटिक” शब्द का इस्तेमाल ऐसे करते हैं, जैसे पूरा घुटना बदलने की प्रक्रिया पूरी तरह मशीन द्वारा की जा रही हो। यही भ्रम, मरीजों को अधिक पैसे खर्च करवाने का सबसे प्रभावी तरीका बन गया है।
🔹 सर्जरी वही, पर बिल कई गुना ज़्यादा—
अगर हम तकनीकी दृष्टि से देखें, तो Conventional Knee Replacement और Robotic-Assisted Knee Replacement में बुनियादी प्रक्रिया लगभग समान है।
फर्क बस इतना है कि रोबोटिक सिस्टम कुछ मापों को डिजिटल रूप में दिखाता है या कटिंग गाइड को अधिक सटीक दिशा देता है। लेकिन मरीजों से इसका मूल्य 1.5 से 3 गुना ज़्यादा लिया जा रहा है।
जहां एक सामान्य Knee Replacement का खर्च ₹2.5 से ₹3 लाख होता है, वहीँ “Robotic” नाम जोड़ने के बाद ₹6 से ₹10 लाख तक का बिल बना दिया जाता है। और यह सब, केवल “तकनीकी” शब्द की चमक के नाम पर किया जाता है।
🔹 मरीज को “भय” और “भ्रम” में रखकर वसूली का खेल—
अस्पतालों की मार्केटिंग टीम मरीज के मन में डर बैठा देती है —
“सामान्य सर्जरी में गलती हो सकती है”,
“रोबोटिक सर्जरी से आप जल्दी चलने लगेंगे”,
“यह पूरी तरह painless और 100% safe है।”
इन वाक्यों के पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
“असल में, मरीज के डर को बढ़ाकर, उसे तकनीकी भ्रम में फंसाया जाता है ताकि वह अधिक पैसे देने को तैयार हो जाए”
🔹 “Technology” का इस्तेमाल अब “Trust” के खिलाफ—
तकनीक का उद्देश्य है — इलाज को सटीक, पारदर्शी और सस्ता बनाना। लेकिन भारत जैसे देशों में यही तकनीक, अब मुनाफ़ा और दिखावे का उपकरण बन गई है।
अस्पताल बड़े-बड़े पोस्टर लगाते हैं —
“First Robotic Knee Replacement Centre”,
“World-Class Robotic Surgery”,
“Next Generation Technology”
लेकिन अगर आप अंदर जाकर देखें, तो सर्जरी वही होती है, बस नाम और बिल अलग होते हैं।
🔹 मरीजों को नहीं बताया जाता असली सच—
कई अस्पतालों में मरीज से ये भी छिपाया जाता है कि —
❔सर्जरी वास्तव में किस मोड में की जा रही है
❔क्या पूरा ऑपरेशन रोबोटिक सहायता से हो रहा है, या सिर्फ़ कुछ हिस्सों में?
❔क्या सिस्टम पूरी तरह functional है या आंशिक?
❔सबसे बड़ी बात — क्या सर्जन उस सिस्टम में पूरी तरह प्रशिक्षित भी है या नहीं?
अक्सर मरीजों को इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, सिर्फ़ एक चमकीला पैकेज दिखाया जाता है — और उस पैकेज की कीमत कई गुना अधिक होती है।
🔹 रोबोटिक सिस्टम = सटीकता नहीं, उपकरण मात्र—
रोबोटिक सिस्टम एक उपकरण है, इंसान का विकल्प नहीं। सफल सर्जरी हमेशा सर्जन के अनुभव, प्रशिक्षण, और निर्णय क्षमता पर निर्भर करती है।
यदि सर्जन अनुभवी है, तो वह बिना रोबोटिक सहायता के भी 100% सटीक सर्जरी कर सकता है।
दूसरी ओर, अगर अनुभव कम है, तो महँगी मशीन भी गलती सुधार नहीं सकती। लेकिन यह सच्चाई मरीज को नहीं बताई जाती — बल्कि यह कहा जाता है कि “अब गलती की गुंजाइश ही नहीं रही”, जबकि यह वैज्ञानिक रूप से गलत और भ्रामक दावा है।
🔹 मेडिकल मार्केटिंग का नया चेहरा — “Technological Branding”
आजकल अस्पतालों की ब्रांडिंग “Technology Based” हो चुकी है। जितना महँगा उपकरण, उतनी बड़ी साख।
लेकिन सवाल यह है —❔ क्या उस तकनीक से मरीज को वाकई फायदा हो रहा है, या सिर्फ़ अस्पताल की कमाई बढ़ रही है?
मरीज के लिए जरूरी है परिणाम (Outcome), न कि मशीन का नाम।
लेकिन दुर्भाग्य से, अब इलाज की चर्चा “कैसे किया गया” से ज्यादा “किस मशीन से किया गया” पर होती है।
🔹 जब इलाज ‘विज्ञान’ से निकलकर ‘व्यवसाय’ बन जाए
जब किसी देश की चिकित्सा व्यवस्था में “उपचार” से ज्यादा “उपकरण” का प्रचार होने लगे, तो यह संकेत है कि स्वास्थ्य प्रणाली का संतुलन बिगड़ चुका है।
अब सर्जन का कौशल नहीं, बल्कि मशीन की ब्रांड वैल्यू मरीज की जेब तय कर रही है।
इसका नतीजा है —
❗आम मरीज तकनीकी शब्दों में उलझा हुआ है,
❗चिकित्सा सेवा अब नैतिकता से ज़्यादा मुनाफ़े पर केंद्रित है,
❗और भरोसे की जगह भ्रम ने ले ली है।
🔹 क्या किया जा सकता है❔
1. पारदर्शिता (Transparency) – मरीज को स्पष्ट बताया जाए कि सर्जरी का कौन-सा हिस्सा रोबोटिक सहायता से किया जाएगा।
2. प्रमाणित प्रशिक्षण (Accredited Training) – केवल वही सर्जन “रोबोटिक सर्जरी” शब्द का उपयोग करें जिन्होंने सिस्टम का प्रमाणित प्रशिक्षण लिया हो।
3. सरकारी निगरानी (Regulation) – स्वास्थ्य मंत्रालय और मेडिकल काउंसिल को ऐसी वसूली पर निगरानी रखनी चाहिए।
4. जनजागरूकता (Public Awareness) – मरीजों को बताया जाए कि रोबोटिक सर्जरी का मतलब “मशीन द्वारा पूरी सर्जरी” नहीं होता।
5. नैतिकता का पालन (Ethics) – चिकित्सा एक सेवा है, सौदा नहीं। “तकनीक” का इस्तेमाल इलाज को सस्ता और सटीक बनाने के लिए हो, न कि महँगा और भ्रमित करने के लिए।
🔹 निष्कर्ष—
“Robotic Knee Replacement Surgery” सुनते ही मरीजों को उम्मीद होती है कि वह आधुनिकता की चोटी पर पहुँच रहे हैं — लेकिन असल में वह एक मार्केटिंग गेम का हिस्सा बन जाते हैं। तकनीक का नाम लेकर जो भरोसा कमाया गया, वही अब मरीज की जेब पर सबसे बड़ा वार बन रहा है।
यह समय है जब समाज, डॉक्टर समुदाय, और नीति निर्माता — सभी को मिलकर यह तय करना होगा कि “तकनीक” इलाज का हिस्सा रहे, व्यापार का हथियार नहीं।
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