भारत में फिजियोथेरेपी अब “First Contact Treatment” (प्रथम सम्पर्क उपचार) के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुकी है
🔹 इसका अर्थ है कि –
👉रोगी बिना किसी डॉक्टर (ऑर्थोपेडिक सर्जन या न्यूरोलोजिस्ट) की रेफरल पर्ची के सीधे फिजियोथेरेपिस्ट से परामर्श ले सकता है।
👉फिजियोथेरेपिस्ट स्वयं रोग का आकलन (Assessment), जाँच और उपचार प्रारम्भ कर सकते हैं।
👉यदि किसी स्थिति में रेड फ्लैग या फिजियोथेरेपी के दायरे से बाहर की समस्या मिले तो फिजियोथेरेपिस्ट रोगी को डॉक्टर / विशेषज्ञ के पास रेफर करेंगे।
आधार:
👉🏿Allied and Healthcare Professions Act, 2021 में फिजियोथेरेपी को स्वतंत्र स्वास्थ्य सेवा पेशा माना गया है।
👉🏿Indian Association of Physiotherapists (IAP) ने भी इसे प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (Primary Care) / First Contact Practitioner के रूप में मान्यता दी है।
👉🏿यह World Confederation for Physical Therapy (WCPT) के मानकों के अनुरूप है।
दायरा (Scope):
👉🏽रोगी की जाँच और मूल्यांकन
👉🏽निदान (Diagnosis) और उपचार योजना बनाना
👉🏽फिजियोथेरेपी उपचार प्रारम्भ करना (Exercise therapy, Manual therapy, Electrotherapy आदि)
👉🏽ज़रूरत पड़ने पर विशेषज्ञ को रेफर करना
रोकथाम (Prevention), पुनर्वास (Rehabilitation) और स्वास्थ्य संवर्धन (Health Promotion)
😄 इससे मरीज को जल्दी और सीधी उपचार सुविधा मिलती है और स्वास्थ्य सेवाओं का बोझ कम होता है।
👉 First Contact Treatment (FCT) का मतलब है कि मरीज बिना किसी रेफ़रल के सीधे फिजियोथेरेपिस्ट के पास जा सकता है और उसे प्राथमिक उपचार मिल सकता है।
दुनिया के कई देशों में ये मॉडल पहले से लागू है, और भारत में भी फिजियोथेरेपी को First Contact Practitioner के रूप में मान्यता मिलने की दिशा में क़दम उठाए जा रहे हैं।
क्यों First Contact Physiotherapy?
✅ चोट लगने या दर्द होने पर सबसे पहले ग़लत मूवमेंट रोकना, सूजन नियंत्रित करना और सही रिहैब शुरू करना — यह काम फिजियोथेरेपिस्ट करते हैं।
✅ हर चोट को तुरंत ऑर्थोपेडिक सर्जरी या दवाई की ज़रूरत नहीं होती।
✅ फिजियोथेरेपी शुरुआती स्तर पर safe, cost-effective और बिना side effect का इलाज देती है।
✅ अगर चोट गंभीर हो (फ्रैक्चर, डिसलोकेशन, लिगामेंट टियर), तो फिजियोथेरेपिस्ट मरीज को तुरंत ऑर्थोपेडिक को रेफ़र करता है।
🔹 इसलिए सही समझ यही है:
👉 पहला संपर्क = फिजियोथेरेपी
👉 अगर ज़रूरत पड़ी = ऑर्थोपेडिक
बहुत से लोग छोटी-मोटी चोट, मोच, या हल्के दर्द में भी सीधे ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के पास चले जाते हैं।
इसके पीछे कुछ कारण हैं:
1. जागरूकता की कमी – लोगों को पता ही नहीं होता कि फिजियोथेरेपी पहला और सही इलाज हो सकता है।
2. पुरानी आदतें – चोट लगते ही दवाई या इंजेक्शन लेने की सोच।
3. रिहैब की महत्ता नहीं समझना – लोग सोचते हैं कि सिर्फ एक्स-रे और दवा ही इलाज है।
4. मार्केटिंग गैप – फिजियोथेरेपी को उतना “First Contact” के रूप में प्रमोट नहीं किया गया।
👉 जबकि सच्चाई यह है कि:
🔹छोटी चोटें, मोच, मांसपेशियों का दर्द, खेल से जुड़ी चोटें, पोस्टर से जुड़ी समस्याएँ इनका सबसे अच्छा इलाज फिजियोथेरेपी ही है।
🔹गंभीर चोट (फ्रैक्चर, डिसलोकेशन, सर्जरी की ज़रूरत वाली स्थिति) – तभी ऑर्थोपेडिक की भूमिका ज़रूरी होती है।
ज़्यादातर लोग फिजियोथेरेपी की महत्वता को कम आंकते हैं, इसके पीछे कई कारण हैं:
1. जागरूकता की कमी
आम जनता को यह जानकारी नहीं है कि फिजियोथेरेपी केवल एक्सरसाइज़ नहीं बल्कि वैज्ञानिक मेडिकल ट्रीटमेंट है। लोग इसे "मसाज" या "जिम जैसी एक्सरसाइज़" समझ लेते हैं।
2. तुरंत राहत की आदत
लोगों को दवा या इंजेक्शन से तुरंत आराम मिल जाता है, इसलिए वे उसी को इलाज मानते हैं। फिजियोथेरेपी रूट कॉज़ ट्रीटमेंट है, जिसमें समय और निरंतरता चाहिए।
3. प्रमोशन की कमी
कमीशन के कारण डॉक्टर, अस्पताल और मीडिया में फिजियोथेरेपी का प्रचार कम है। जबकि सर्जरी और दवाइयों का प्रचार ज़्यादा होता है।
4. सही गाइडेंस न मिलना
कई बार मरीज को ऑर्थोपेडिक सीधे दवा/सर्जरी की ओर भेज देते हैं, फिजियोथेरेपी की सलाह नहीं देते। इसके कारण मरीज को लगता है कि यह सेकेंडरी ट्रीटमेंट है।
5. धैर्य की कमी
फिजियोथेरेपी में 2–4 हफ़्तों तक नियमित सत्र ज़रूरी होते हैं।
लोग जल्दी बोर हो जाते हैं और बीच में ही छोड़ देते हैं।
👉 असलियत यह है कि:
फिजियोथेरेपी बीमारी को दबाती नहीं, बल्कि जड़ से ठीक करती है।
✔️दर्द का कारण मिटाती है।
✔️सर्जरी से बचा सकती है।
✔️दवाइयों की निर्भरता कम करती है।
✔️जीवनभर की मोबिलिटी और एक्टिविटी बनाए रखती है।
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