मंगलवार, 11 नवंबर 2025

"खूब बना दिये Engineer और MBA, अब Engineering Universities ने ठान लिया है कि वे Physiotherapy Doctor भी बनाएँगी, चाहे विज्ञान और चिकित्सा की मर्यादा ही क्यों न टूट जाए!"

मेरा यह ब्लॉग Engineering Universities में चल रहे Physiotherapy कोर्स के शीर्षक पर आधारित एक impactful, awareness-based long article, जिसमें समाज, शिक्षा व्यवस्था और चिकित्सा की मर्यादा — तीनों पहलुओं का गहरा और संतुलित विश्लेषण किया गया है👇

"खूब बना दिये Engineer और MBA, अब Engineering Universities ने ठान लिया है कि वे Physiotherapy Doctor भी बनाएँगी, चाहे विज्ञान और चिकित्सा की मर्यादा ही क्यों न टूट जाए!"

      पिछले दो दशकों में भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा परिवर्तन देखने को मिला — जहाँ इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजों की बाढ़ ने देश के हर शहर, कस्बे और गाँव तक “डिग्री” पहुँचाई। पर सवाल यह है कि क्या उसने ज्ञान भी पहुँचाया?
       जब हर साल लाखों इंजीनियर और MBA डिग्रीधारी रोजगार की तलाश में सड़कों पर उतरते हैं, तब भी कई संस्थाएँ नए कोर्स, नए विभाग और नए प्रयोगों की घोषणा करने से नहीं रुकतीं। अब वही विश्वविद्यालय, जिन्होंने देश में बेरोजगार इंजीनियरों की फौज तैयार की, Physiotherapy Doctor तैयार करने निकल पड़े हैं बिना यह समझे कि चिकित्सा कोई सॉफ्टवेयर कोड नहीं, बल्कि जीवित शरीर की जिम्मेदारी है।



⚙️ शिक्षा नहीं, अब व्यवसाय बन गया है ज्ञान—

         Engineering Universities अब Medical Profession में भी कदम रख रही हैं। वे वही संस्थाएँ हैं जहाँ कभी “Applied Physics” और “Computer Science” पढ़ाई जाती थी — आज वहाँ “Human Anatomy” और “Therapeutic Exercise” सिखाने की घोषणाएँ हो रही हैं। सवाल उठता है — क्या यह शिक्षा है, या शिक्षा के नाम पर डिग्री का व्यापार?
      क्योंकि Physiotherapy सिर्फ exercise या machine therapy नहीं है; यह Medical Science की वह शाखा है जो शरीर की pathology, neurophysiology, orthopedics, और rehabilitation के गहरे अध्ययन पर आधारित है। यह वही क्षेत्र है जहाँ गलती केवल नतीजा नहीं, किसी की जिंदगी बदल सकती है।

🩺 चिकित्सा की मर्यादा बनाम डिग्री की राजनीति—

      Medical Physiotherapy एक clinical discipline है। इसमें anatomy, physiology, pathology, neurology और biomechanics की उतनी ही समझ जरूरी है जितनी किसी doctor को होती है। पर जब Engineering University यह कोर्स शुरू करती है, तो यह सिर्फ शिक्षा का नहीं, मर्यादा का उल्लंघन है।
      क्योंकि जिस संस्था के पास मेडिकल शिक्षक नहीं, अस्पताल नहीं, और clinical exposure का वातावरण नहीं — वह कैसे एक clinically trained physiotherapist तैयार कर सकती है? क्या ये छात्र केवल डिग्री पाने के लिए बनेंगे, या मरीज की जिम्मेदारी भी निभाएँगे?

🎭 डिग्री फैक्ट्री से निकलता डॉक्टर या खिलवाड़ का शिकार ?

       आज जब हर क्षेत्र में “market demand” के नाम पर कोर्स बनाए जा रहे हैं, तो यह सवाल पूछना जरूरी है — क्या health care भी एक market product बन चुका है?
      जब Engineering University “Physiotherapy Doctor” बनाने की घोषणा करती है, तो यह सिर्फ एक कोर्स नहीं, बल्कि उस medical ethics पर सीधा प्रहार है, जो सदियों से चिकित्सा की नींव रही है।
     एक engineer गलत code लिखे तो software क्रैश होता है।
एक physiotherapist गलत diagnosis करे तो insaan का शरीर और जीवन प्रभावित होता है।
फर्क यही है — और इस फर्क को मिटाना ही सबसे बड़ा अपराध है।

🧠 Medical Profession में घुसपैठ और system की चुप्पी—

     सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि Regulatory Bodies कहाँ हैं?
भारत में आज तक एक स्वतंत्र Physiotherapy Council नहीं है — इसी का नतीजा है कि कोई भी विश्वविद्यालय, चाहे वह engineering हो या management-based, अपने तरीके से physiotherapy कोर्स शुरू कर देता है।
      यह केवल profession का नहीं, बल्कि public health का भी संकट है। क्योंकि जो विद्यार्थी बिना proper clinical infrastructure के physiotherapy सीख रहे हैं, वे आगे चलकर किसी अस्पताल या क्लिनिक में जब असली मरीज को छूएँगे — तो उनका अधूरा ज्ञान सीधे मरीज पर असर करेगा।

🏛️ कानून, नैतिकता और जवाबदेही का सवाल—

❔क्या UGC या AICTE यह सुनिश्चित कर रही हैं कि जो संस्थाएँ medical science पढ़ा रही हैं, उनके पास medical faculty है?

❔क्या State Medical Universities यह देख रही हैं कि कौन-से college बिना अनुमति के “Doctor of Physiotherapy” या “Clinical Physiotherapy” जैसे misleading नामों से कोर्स चला रहे हैं?

यह पूरा परिदृश्य बताता है कि शिक्षा अब quality की नहीं, quantity की दौड़ बन चुकी है — जहाँ हर संस्थान को बस एक नया कोर्स शुरू करके “market में टिके रहना” है।

⚖️ Physiotherapy Doctor बनाना कोई प्रयोग नहीं यह समाज की सेहत से जुड़ी ज़िम्मेदारी है—

      Physiotherapy medical system का वह स्तंभ है जो न केवल दर्द कम करता है बल्कि इंसान को फिर से चलना, उठना, और जीना सिखाता है। यह कोई short course या side stream नहीं है — यह एक clinical science है।
      इसे केवल classrooms या labs में नहीं, बल्कि hospitals के wards और patients के साथ सीखा जाता है। और जब इसे बिना medical ecosystem के सिखाया जाएगा, तो जो बनेगा वह physiotherapist नहीं, health risk होगा।

🔥 अब समय है  सवाल उठाने का, चुप रहने का नहीं—

       भारत में medical physiotherapists आज भी अपनी पहचान और अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अब जब non-medical और engineering universities इस क्षेत्र को भी “commercial course” बना रही हैं, तो यह न सिर्फ physiotherapists की गरिमा पर आघात है, बल्कि पूरे health system पर खतरा है।

अगर हम आज नहीं बोले, तो कल मरीज की पीड़ा और डॉक्टर की जिम्मेदारी दोनों एक “डिग्री कोर्स” में बदल जाएँगे।

निष्कर्ष: शिक्षा संस्थान नहीं, समाज की जिम्मेदारी—


🔹“Physiotherapy Doctor” बनाना आसान है, लेकिन Physiotherapy की मर्यादा बचाना कठिन।
🔹यह लड़ाई डिग्री की नहीं मानव शरीर की गरिमा, चिकित्सा की सच्चाई, और समाज के विश्वास की है।

क्योंकि अगर Engineering Universities डॉक्टर बनाएँगी —
तो शायद भविष्य में मरीज भी मशीन बन जाएगा।

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