शनिवार, 1 नवंबर 2025

क्यों Senior Doctors Physiotherapist से बात करने से कतराते हैं — सिस्टम की सच्चाई समझिए ❔

🩺 क्यों Senior Doctors Physiotherapist से बात करने से कतराते हैं — सिस्टम की सच्चाई समझिए ❔

     भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में Physiotherapist एक अहम लेकिन अक्सर कम आंका गया स्तंभ है। हर सर्जरी, हर ऑर्थोपेडिक केस, हर न्यूरोलॉजिकल या कार्डियक रिहैबिलिटेशन में Physiotherapy की भूमिका इतनी आवश्यक है कि उसके बिना किसी भी इलाज को “पूरा” नहीं कहा जा सकता। फिर भी एक सच्चाई यह है कि — ज़्यादातर बड़े डॉक्टर (Orthopedic Surgeon, Neuro Surgeon, Physician आदि), अपने मरीज के Physiotherapist से बात करने से बचते हैं। सवाल उठता है — क्यों ❔

❔क्या यह अहंकार है?
❔क्या यह व्यवस्था की मजबूरी है?
❔या फिर यह दोनों के बीच “Communication Gap” नहीं, बल्कि “Recognition Gap” है?

आइए, इस पूरे सिस्टम की परतें एक-एक करके समझते हैं ➡️

⚙️ 1. Systemic Hierarchy: “Doctor ऊपर, Physiotherapist नीचे” की मानसिकता—
          भारत की मेडिकल शिक्षा और अस्पताल संस्कृति अभी भी “Doctor-Centric” है। इसका मतलब यह नहीं कि डॉक्टर गलत हैं, बल्कि यह कि पूरी व्यवस्था डॉक्टर को ही “अंतिम निर्णयकर्ता” मानती है।

🔹हर मरीज की रिपोर्ट, दवा और सर्जरी डॉक्टर के हस्ताक्षर से तय होती है।
🔹Physiotherapist को अक्सर “supportive staff” के रूप में देखा जाता है, न कि “independent professional” के रूप में।
🔹जब व्यवस्था में ही “समानता” नहीं है, तो “संवाद” कहाँ से आएगा ❔

      यह असमानता power dynamics पैदा करती है — जिसमें डॉक्टर को यह लगता है कि Physiotherapist से बात करना “समय की बर्बादी” या “अपनी authority को कम करना” है।

🧠 2. Ego vs Expertise: ज्ञान की नहीं, पहचान की लड़ाई—
       अक्सर डॉक्टर और Physiotherapist दोनों के बीच ego conflict पैदा होता है। कई बार Physiotherapist, मरीज की functional recovery या biomechanics को बेहतर समझता है, जबकि डॉक्टर का दृष्टिकोण clinical या surgical होता है।
“यह ज्ञान का अंतर नहीं, बल्कि दृष्टिकोण का अंतर है”
      लेकिन जब डॉक्टर को लगता है कि Physiotherapist “उनके फैसलों पर टिप्पणी” कर रहा है, तो “Ego” आड़े आ जाती है। और यही वह बिंदु है जहाँ सहयोग की जगह टकराव शुरू हो जाता है।

🩻 3. Referral Culture: “Patient mine or yours ?”
    भारत में बहुत से डॉक्टर आज भी मरीज को “अपना patient” मानते हैं।
Physiotherapist अगर डॉक्टर से बात करे तो कई बार उसे “interference” समझा जाता है।
डॉक्टर सोचता है —

“मरीज मेरा है, इसका इलाज मैंने शुरू किया, अब कोई दूसरा मुझे क्या बताएगा ?”

वहीं Physiotherapist सोचता है —

“मैं ground level पर मरीज की progress देख रहा हूँ, मुझे feedback देना ज़रूरी है।”

इस communication gap का सबसे बड़ा नुकसान मरीज को होता है।
क्योंकि इलाज के दो हिस्से — Medical और Rehabilitation — एक-दूसरे से कट जाते हैं।

🧩 4. Lack of Interprofessional Education: सिस्टम ने सिखाया ही नहीं—
       BPT और MBBS, दोनों कोर्स अलग-अलग कॉलेज, अलग-अलग ढंग से चलते हैं। कहीं भी ऐसा common platform नहीं है जहाँ दोनों एक-दूसरे के कार्यक्षेत्र को समझें या सम्मान देना सीखें।

🔸Medical students को Physiology और Anatomy तो सिखाई जाती है, पर functional recovery नहीं।
🔸Physiotherapy students को human behavior और rehabilitation की गहराई सिखाई जाती है, पर medical coordination नहीं।

जब शिक्षा ही अलग-अलग है, तो सहयोग कैसे होगा ?

💼 5. Corporate Hospitals का “Chain of Command” Culture—
     Private Hospitals या Corporate setups में hierarchy बहुत कठोर होती है। Consultant Doctor के नीचे junior doctors, nurses, और फिर allied professionals (जिनमें Physiotherapist भी शामिल होते हैं)।
इस hierarchy में सीधी बातचीत करना “protocol break” समझा जाता है।
         कई बार Physiotherapist सिर्फ “notes” या “progress report” भेज सकता है — लेकिन डॉक्टर से सीधा संवाद करना उसे “Permission” से करना पड़ता है।

पर सवाल यह है ❔

अगर इलाज टीमवर्क से होना चाहिए, तो संवाद पर रोक क्यों ❔

💰 6. Commercial Pressure: पैसा, प्रोटोकॉल से बड़ा—
     कई बार संवाद की कमी का कारण पेशेवर हितों का टकराव होता है। कुछ डॉक्टर मरीज को physiotherapy के लिए भेजना ही नहीं चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे “patient loss” या “revenue sharing issue” होगा।
Physiotherapist अगर बेहतर result देता है, तो कई बार डॉक्टर को असहजता (अपने आप में बदनामी) महसूस होती है।

यह स्थिति खासकर तब दिखती है जब मरीज कहता है —

“Doctor ने तो बस दवा दी, असली फायदा तो physiotherapy से हुआ”

ऐसे वाक्य डॉक्टर के अहम को चोट पहुँचा देते हैं — और डॉक्टर फिजियो से दूरी बना लेते हैं।

📞 7. Communication Gap से Patient Outcome पर असर—
      जब डॉक्टर और Physiotherapist में संवाद नहीं होता, तो इसका सीधा असर मरीज की recovery पर पड़ता है।
❌गलत exercise प्रोटोकॉल
❌over/under treatment
❌contradictory advice
❌और सबसे बड़ा — मरीज का confusion

मरीज सोचता है: “Doctor कुछ और बोलता है, Physiotherapist कुछ और”
नतीजा — विश्वास दोनों से उठ जाता है।

🧭 8. Foreign System में फर्क क्यों नहीं है?
       पश्चिमी देशों जैसे UK, Canada, Australia आदि में Physiotherapist को “First Contact Practitioner” माना जाता है। वहाँ डॉक्टर और Physiotherapist दोनों Equal Professionals हैं — जिनके बीच “Referral Communication” एक Routine प्रक्रिया है। क्योंकि वहाँ प्रणाली सहयोग पर आधारित है, प्रतियोगिता पर नहीं।

भारत में अगर यही सहयोग स्थापित हो जाए, तो Recovery Outcomes कई गुना बेहतर हो सकते हैं।

🌱 9. समाधान: संवाद की दीवार तोड़ना—

✔️डॉक्टरों को यह समझना होगा कि Physiotherapist उनके नीचे नहीं, बल्कि उनके साथ काम करता है।
✔️Physiotherapist को भी professionalism और respect बनाए रखते हुए effective communication skills विकसित करने होंगे।
✔️Institutes को inter-professional training modules शुरू करने चाहिए।
✔️और मरीजों को यह समझना चाहिए कि इलाज टीमवर्क से होता है, एक व्यक्ति से नहीं।

💬 निष्कर्ष:—

       डॉक्टर और Physiotherapist दोनों का मकसद एक ही है — मरीज की बेहतर सेहत । लेकिन जब संवाद दीवार बन जाता है, तो वही सिस्टम कमजोर हो जाता है।

“इलाज की सफलता डॉक्टर के prescription से नहीं, टीम के Coordination से तय होती है”

अगर Senior Doctors Physiotherapist से बात करने लगें — तो हर मरीज की recovery और भी तेज़, सुरक्षित और संतुलित हो सकती है।



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