जब Non-Medical Private University का असली चेहरा सामने आता है: BPT में Admission की सबसे बड़ी गलती समझ आने पर पहले ही साल में छात्रों की उम्मीदें, मनोबल और करियर का पूरा दृष्टिकोण हिल जाता है
BPT—यह कोर्स अक्सर छात्रों के मन में एक Healthcare Professional Doctor बनने का सपना जगाता है। एक ऐसा पेशा जिसमें ज्ञान, कौशल और इंसानी स्पर्श तीनों का संयोजन होता है। लेकिन जब यही सपना ऐसे संस्थानों के हवाले हो जाए जो वास्तव में medical ecosystem का हिस्सा ही नहीं हैं, तो केवल सपना नहीं टूटता बल्कि पूरा भविष्य हिल जाता है।
पहले साल में ही बहुत से छात्रों को एहसास हो जाता है कि Non-Medical Private University में Admission लेना शायद उनके जीवन का सबसे बड़ा गलत निर्णय था। कारण सिर्फ पढ़ाई का कमजोर होना नहीं है—बल्कि पूरा सिस्टम ऐसा है कि छात्र मानसिक, भावनात्मक और करियर के स्तर पर बिखरने लगते हैं।
यह लेख उसी टूटन, उसी वास्तविकता, और उसी मनोदशा को विस्तार से सामने रखता है—
1. Admission के समय चमक-दमक और एक साल बाद कड़वी हकीकत: सपना जिस तरह टूटता है:—
Admission के समय सब कुछ आकर्षक लगता है—
• चमकदार Prospectus
• विज्ञापनों में दिखने वाली High-Tech Buildings
• Placement के खोखले दावे
• “World Class Labs” जैसे नारे
• और Admission Counsellors की रटी-रटाई मार्केटिंग
लेकिन पहले ही साल के अंत तक छात्र समझ जाते हैं कि यह चमक बस एक मायाजाल है। जैसे-जैसे असली क्लासेज़ शुरू होती हैं, धीरे-धीरे पूरा भ्रमजाल खुलने लगता है:
❌Labs में या तो उपकरण नहीं होते या फिर सिर्फ शो-पीस रखे होते हैं।
❌Anatomy और Physiology की गहराई, जो BPT का मूल आधार है, वह न के बराबर सिखाई जाती है।
❌Faculty ऐसी जिनका खुद मेडिकल बैकग्राउंड कमजोर होता है।
❌Non-medical campus का वातावरण जहाँ medical seriousness की कोई संस्कृति नहीं होती।
यह एहसास इतने गहरे तक चोट करता है कि छात्र खुद से पूछने लगते हैं—
“क्या मैंने अपना जीवन गलत दिशा में मोड़ दिया ?”
2. Non-Medical Universities की सबसे बड़ी कमी: Clinical Ecosystem का शून्य:—
Physiotherapy एक क्लिनिकल प्रोफेशन है।
लेकिन Non-Medical University में:
❌न Medical OPD
❌न Surgery वाले मरीज
❌न ICU
❌न Orthopedic, Neuro, Cardio cases
❌न कोई Exposure
❌न कोई Interdisciplinary clinical team
छात्र बार-बार महसूस करते हैं कि जितना सीखना चाहिए था, उसका 10% भी उन्हें हाथों में नहीं मिलता।
Clinical exposure की कमी directly दुख देती है—क्योंकि Physiotherapy स्किल का खेल है। और जिस विश्वविद्यालय में patient base ही न हो, वहाँ स्किल कैसे बने?
पहले वर्ष के अंत तक छात्र समझ जाते हैं:
“डिग्री मिलेगी, स्किल नहीं और बिना स्किल के फिजियोथेरेपी सिर्फ एक कागज़ बनकर रह जाती है”
3. साल भर में छात्रों की मनोदशा में बदलाव: आत्मविश्वास से गिरकर अपराधबोध तक:—
BPT की शुरुआत करने वाले छात्र आत्मविश्वास से भरे होते हैं—
“मैं खुद को मेडिकल फील्ड में स्थापित करूँगा और Doctor बनूँगा।”
लेकिन एक साल बाद उनकी मनोदशा पूरी तरह बदल चुकी होती है:
• 1st Month – आशा और उत्साह:
सब कुछ नया, रोचक और अच्छा लगता है।
• 3rd Month – संदेह की शुरुआत:
क्लास में depth नहीं, lab में practical नहीं, और faculty में clinical experience का अभाव students को परेशान करने लगता है।
• 6th Month – चिंता और बेचैनी:
Campus medical नहीं है।
Patients कहीं दिखते ही नहीं।
Hands-on सीखने का माहौल गायब।
Students को अपना भविष्य धुंधला लगने लगता है।
• 12th Month – पछतावा, अपराधबोध और गहरी निराशा:
Students खुद से सवाल करने लगते हैं:
“क्या यह कोर्स वाकई मेरे लिए सही था?”
“क्या मैं professional बन भी पाऊँगा?”
“क्या मैंने गलत जगह Admission ले लिया?”
यह मानसिक बदलाव कई बार anxiety, frustration और career confusion तक पहुँचा देता है।
4. Faculty की क्लिनिकल कमजोरी: जब Teacher ही फील्ड से दूर हों और distance से MPT किया हुआ हो, तो Students का भविष्य भी distance में चला जाता हैं:—
“Good Physiotherapists बनते हैं
Good Teachers + Good Clinicians के मिलन से”
लेकिन Non-Medical University में अक्सर ऐसा होता है:
🚫Faculty ने कभी hospital setting में काम नहीं किया होता।
🚫उन्हें complex cases का अनुभव नहीं होता।
🚫Objective सिर्फ syllabus पूरा करना होता है, clinical understanding नहीं।
🚫Practical demo सिर्फ किताबों तक सीमित रहता है।
🚫Anatomy, Physiology, Pharmacology और Surgery जैसे विषय भी Physiotherapist पढ़ाते है।
BPT जैसे profession में यह हत्या समान है— क्योंकि यहाँ सीखने का आधार “किताब + हाथ” होता है, केवल किताब नहीं।
जब student यह समझता है कि शिक्षक खुद real-world experience से दूर है, तो student का मनोबल एकदम टूट जाता है।
5. Infrastructure के नाम पर धोखा — Labs हैं, पर Learning नहीं:—
Non-Medical Universities में labs होती तो हैं, पर सिर्फ दिखावे के लिए:
🔸Stethoscope टूटा हुआ
🔸Goniometer गायब
🔸Traction Machine काम ही नहीं करती
🔸Electrotherapy machines सिर्फ मॉडल हैं
🔸Treadmill केवल admission-tour में दिखाई जाती है
छात्रों को एहसास होता है कि जिस चीज़ के लिए लाखों रुपए फीस देकर Admission लिया था— वह Professional Training actually होती ही नहीं।
सबसे बड़ा झटका तब लगता है जब उन्हें ये समझ आता है:
“Without proper labs और Hospital, हम half-educated physiotherapists बनेंगे”
6. Non-Medical Culture: जहाँ Physiotherapy को अकादमिक seriousness नहीं, general degree की तरह देखा जाता है:—
Medical colleges में—
✔️मरीजों की आवाज़
✔️केस डिस्कशन
✔️Rounds of doctors
✔️Clinical reasoning
✔️डॉक्टरों की टीम
✔️Emergency
✔️Operation theatres
✔️ICU
✔️Orthopedic and Neuro wards
सब मिलकर एक Medical Culture बनाते हैं।
लेकिन Non-Medical University में ऐसा कोई वातावरण नहीं होता। Campus engineering, arts, commerce और MBA के माहौल पर चलता है, जहाँ BPT सिर्फ एक “course” बनकर रह जाता है, profession नहीं।
इससे students internally feel करते हैं कि वे एक ऐसे जहाज पर सवार हैं जो न दिशा में है, न मंज़िल की तरफ जा रहा है।
7. करियर के लिए बढ़ती बेचैनी: ‘Physiotherapy की Degree तो मिलेगी, पर Job कौन देगा ?’
पहले साल के अंत तक students future के बारे में गहराई से डरने लगते हैं:
“Hospital मुझे क्यों रखेगा?”
“अगर clinical training ठीक नहीं हुई, तो मैं patients कैसे देखूँगा?”
“Professional confidence कैसे आएगा?”
“कहीं मेरी degree सिर्फ ‘paper degree’ तो नहीं?”
यह भय students को लगातार mentally disturb करता रहता है।
❗कई छात्र दूसरे college में migration ढूँढते हैं।
❗कुछ resign कर देते हैं।
❗कुछ course बदलने की सोचने लगते हैं।
❗और कुछ depression जैसी स्थिति तक पहुँच जाते हैं।
8. घर वालों की उम्मीदें और students का guilt — दोहरी मानसिक लड़ाई:—
छात्र सबसे ज्यादा टूटते हैं तब— जब घर वाले पूछते हैं:
“कैसी पढ़ाई चल रही है?”
“कुछ सीख रहे हो?”
“Future safe है?”
और छात्र सिर्फ मुस्कुराकर “हाँ” कह देता है…
लेकिन अंदर से जानता है कि सच बिल्कुल उलटा है।
यह guilt mind को तोड़ देता है, उन्हें लगातार लगता है:
“मैंने पैसे भी बर्बाद किए और साल भी।”
“मुझसे गलती हुई।”
“मैं family की उम्मीदें पूरी नहीं कर पा रहा।”
यही मनोवैज्ञानिक दबाव एक साल बाद students को emotionally hollow बना देता है।
9. साल पूरा होते-होते students की मनोदशा एक ही लाइन में बदल जाती है:—
“काश! Admission लेने से पहले किसी Senior से बात कर ली होती…”
यह शायद सबसे दर्दनाक realization है। क्योंकि students समझ जाते हैं—
❗दुनिया का सबसे सुंदर campus
❗सबसे आकर्षक brochure
❗सबसे बड़े promises
❗सबसे चमकदार building
इनमें से कोई भी चीज़ medical training की quality का विकल्प नहीं हो सकती।
BPT सिर्फ degree नहीं—clinical skill है, और clinical skill वहाँ नहीं मिल सकती जहाँ clinical environment ही नहीं है।
10. निष्कर्ष: Admission एक गलती नहीं थी, गलत University का चयन गलती था:—
सच यही है कि BPT एक शानदार, सम्मानित, और rapidly growing medical profession है। परंतु इसे Non-Medical Private University में पढ़ना career नहीं, struggle बन जाता है।
पहले साल में ही छात्र यह सच्चाई समझ जाते हैं:–
✅सही University चुनना ही BPT की 50% सफलता है।
❌गलत University चुनना ही career का सबसे बड़ा झटका है।
✅Medical exposure और clinical ecosystem ही असली training है।
❌बाकी सब सिर्फ दिखावा, मार्केटिंग और hollow promises हैं।
और यही वह जगह है जहाँ students भीतर से टूट जाते हैं, क्योंकि सपना और हकीकत के बीच की दूरी बहुत बड़ी निकलती है।