रविवार, 7 जनवरी 2018

फ्रोज़न शोल्डर का उपचार (Frozen Shoulder Treatment)

फ्रोज़न शोल्डर (Frozen Shoulder)

कंधे का दर्द एक बहुत ही आम शिकायत है। ऐसा माना जाता है कि कंधों के आसपास जोड़ों में सूजन आने के कारण यह दर्द होता है। ऐसे दर्द में कभी-कभार कंधे सुन्न भी पड़ जाते हैं। यह स्थिति कई बार महीनों तक रह जाती है।

कंधों के दर्द के पीछे का राज (About Frozen Shoulder in Hindi)
हमारा कंधा तीन हड्डियों से बना है। ऊपरी बांह की हड्डी, कंधे की हड्डी और हंसली। ऊपरी बांह की हड्डी का सबसे ऊपर वाला हिस्सा कंधे के ब्लेड के एक गोल सॉकेट में फिट रहता है। यह सॉकेट ग्लेनोइड (Glenoid) कहलाता है। मांसपेशियों और टेंडन्स (Tendons) का संयोजन (conjunction) बांह की हड्डी को कंधे के सॉकेट में केंद्रित रखता है। ये ऊतक (Muscles) रोटेटर कफ कहलाते हैं।
ज्यादातर, कंधे की समस्याओं का प्राथमिक कारण रोटेटर कफ में पाये जाने वाले आसपास के कोमल ऊतक का उम्र के कारण प्राकृतिक रूप से बिगड़ना है। कंधों में होने वाली इस जकड़न को फ्रोजन शोल्डर (Frozen Shoulder) नाम से जाना जाता है। इस दर्द का कारण आसानी से पता नहीं चलता। फ्रोजन शोल्डर में कंधे की हड्डियों को मूव करना मुश्किल होने लगता है।

किन लोगों को हो सकती है यह समस्या (Issue of Frozen Shoulder)
कंधे का दर्द दिनभर की गतिविधियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है। फ्रोजन शोल्डर की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में दोगुनी पाई गयी है। रोटेटर कफ में तकलीफ की स्थिति 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों में ज्यादा देखी जाती है। कंधे के अत्यधिक प्रयोग से उम्र की वजह से होने वाली गिरावट में तेजी आ सकती है। 

फ्रोज़न शोल्डर के लक्षण


कंधों में जकड़न का कारण (Causes of Frozen Shoulder) 

कंधों में होने वाली जकड़न मुख्यत: निम्न कारणों से हो सकती है: 
फ्रोजन शोल्डर (Frozen Shoulder) की चिकित्सा समय पर नहीं की गई तो मरीज को पूरा जीवन इस समस्या के साथ बिताना पड़ सकता है।

अधिक जानकारी के लिए हमारे विशेषज्ञ से संपर्क करे:
डॉ. बृजेश कुमार बाँसीवाल, फिजियोथेरेपिस्ट, जयपुर
पृथासावी हॉस्पिटल, जगतपुरा रेलवे फ्लाईओवर ब्रिज के पास,  जगतपुरा, जयपुर
मोबाइल: 9414990102

सोमवार, 3 जुलाई 2017

कब और क्यों ज़रूरी है फिजियोथेरेपी ?

कब और क्यों ज़रूरी है फिजियोथेरेपी ?

अधिकांश लोग जागरूकता की कमी के कारण फिजियोथेरेपी को ‘एक और’ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति से ज्यादा महत्व नहीं देते। कुछ इसके दायरे को मसाज तक सीमित कर देते हैं, तो कुछ इसे खेल के दौरान लगने वाली चोट को ठीक करने के लिए उपयोगी मानते हैं। पर फिजियोथेरेपी की उपयोगिता इससे कहीं ज्यादा है। क्यों और कब जरूरी है फिजियोथेरेपी बता रहे है-
अगर दवा, इंजेक्शन और ऑपरेशन के बिना दर्द से राहत पाना चाहते हैं तो फिजियोथेरेपी के बारे में सोचना चाहिए। चिकित्सा और सेहत दोनों ही क्षेत्रों के लिए यह तकनीक उपयोगी है। पर जागरूकता की कमी व खर्च बचाने की चाह में लोग दर्द निवारक दवाएं लेते रहते हैं। मरीज तभी फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाते हैं, जब दर्द असहनीय हो जाता है।
फिजियोथेरेपी में न्यूरोलॉजी, हड्डी, हृदय, बच्चों व वृद्धों की समस्याओं के क्षेत्र से जुड़े खास एक्सपर्ट भी होते हैं। आमतौर पर फिजियोथेरेपिस्ट ईलाज शूरू करने से पहले बीमारी का पूरा इतिहास देखते हैं। उसी के अनुसार आधुनिक इलेक्ट्रोथेरेपी (जिसमें इलाज के लिए करेंट का इस्तेमाल किया जाता है) और स्ट्रेचिंग व व्यायाम की विधि अपनाई जाती है। मांसपेशियों और जोड में के दर्द से राहत के लिए फिजियोथेरेपिस्ट मसाज का भी सहारा लेते हैं। 
नियमित हो इलाज
फिजियोथेरेपी से कुछ दर्द में तो तुरंत आराम मिलता है, पर स्थायी परिणाम के लिए थोड़ा वक्त लग जाता है। दर्द निवारक दवाओं की तरह इससे कुछ ही घंटों में असर नहीं दिखाई देता। खासकर फ्रोजन शोल्डर, कमर व पीठ दर्द के मामलों में कई सिटिंग्स लेनी पड़ सकती हैं। कई मामलों में व्यायाम भी करना पड़ता है और जीवनशैली में बदलाव भी। इलाज की कोई भी पद्धति तभी कारगर साबित होती है, जब उसका पूरा कोर्स किया जाए। फिजियोथेरेपी के मामले में यह बात ज्यादा मायने रखती है।
घुटनों का हो जब बुरा हाल
हाल ही में जारी यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओनटेरियो की एक रिपोर्ट के मुताबिक गठिया से ग्रस्त घुटनों के इलाज में फिजियोथेरेपी, ऑथरेस्कोपी सर्जरी जितनी ही कारगर है। शोध में शामिल ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. रॉबर्ट लिचफील्ड के अनुसार फिजियोथेरेपी में दर्द की मूल वजहों को तलाशकर उस वजह को ही जड़ से खत्म कर दिया जाता है। मसलन यदि मांसपेशियों में खिंचाव के कारण घुटनों में दर्द है तो स्ट्रेचिंग और व्यायाम के जरिये इलाज किया जाता है, पर यदि पैरों के खराब संतुलन की वजह से दर्द हो रहा है तो फिजियोथेरेपिस्ट ऑर्थोटिक्स शू (विशेष प्रकार के जूते, जो पैरों को एक सीध में करता है) पहनने की सलाह देते हैं।
अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि घुटनों के दर्द से निजात पाने में सर्जरी के 80 फीसदी मामले व्यायाम व फिजियोथेरेपी की कमी के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाते। कई मामलों में कूल्हे व घुटने के प्रत्यारोपण व फ्रैक्चर के बाद उनके रिहैबिलिटेशन में भी फिजियोथेरेपी लेने की सलाह दी जाती है। चिकित्सक भी कई मामलों में फिजियोथेरेपी जरूरी मानते हैं।
सिखाता है सांस लेने की कला
फिजियोथेरेपी का दायरा सिर्फ मांसपेशियों और हड्डियों तक सीमित नहीं है। इसकी सीमा में वो तंत्रिकाएं भी आती हैं जो हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को नियंत्रित करती हैं। उदाहरण के तौर पर अस्थमा या किसी भी तरह के सांस के रोगों को ही लें। कार्डियोवस्कुलर फिजियोथेरेपिस्ट इस तरह के मरीजों को सांस रोकने और छोड़ने वाले व्यायाम या गुब्बारे फुलाने जैसे अभ्यास के जरिये ठीक करता है। वास्तव में इसके जरिये कार्डियोवस्कुलर फिजियोथेरेपिस्ट गर्दन और छाती की मांसपेशियों की स्ट्रेचिंग करवाते हैं, जिससे वो और मजबूत बनते हैं।
असहनीय दर्द में भी दे आराम
डेनमार्क में हुए एक शोध के अनुसार फिजियोथेरेपी ऑस्टियोपोरोसिस या किसी अन्य फ्रैक्चर में होने वाले दर्द से भी राहत दिला सकती है। दरअसल, फिजियाथेरेपिस्ट व्यायाम की मदद से दर्द के आसपास वाली मांसपेशियों और जोडमें को मजबूत बना देते हैं, जिससे लंबे समय में दर्द खत्म हो जाता है। फिजियोथेरेपिस्ट कुछ व्यायाम करवाने के साथ-साथ विशेष प्रकार के जूते पहनने की भी सलाह देते हैं, जिसे पहनने के बाद दर्द के बावजूद मरीज आसानी से चल-फिर सकता है। यह तरीका ऐसे वृद्धों पर भी आजमाया जाता है जो ज्यादा उम्र की वजह से चल नहीं पाते।
कमर में दर्द हो तो
बैठने, खड़े होने या चलने के खराब पॉस्चर की वजह से या मांसपेशियों में खिंचाव के कारण या फिर आथ्र्राइटिस की वजह से कमर व पीठ में दर्द बढ़ जाता है। पीठ दर्द के इलाज के लिए फिजियोथेरेपी में कुछ सामान्य तरीके आजमाए जाते हैं। इनमें से एक है शरीर का वजन कम करना, ताकि जोड में पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार को कम किया जा सके। दूसरा, मांसपेशियों की मजबूती और तीसरा तरीका है, री-पैटर्निग ऑफ मसल्स यानी किसी खास हिस्से में मांसपेशियों के पैटर्न को व्यायाम के जरिये ठीक करना। हमारी पीठ व कूल्हे के निचले हिस्से में करीब दो दर्जन से ज्यादा मांसपेशियां होती हैं, जिनका ठीक रहना जरूरी है।
पेल्विक डिसऑर्डर
प्रेग्नेंसी या किसी सर्जरी के बाद कई लोगों को पेल्विक (पेट के नीचे का हिस्सा) में दर्द रहने लगता है। कुछ लोगों को इसमें ऐंठन भी महसूस होती है। दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चे के जन्म के बाद या सर्जरी के बाद यहां की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं। पेल्विक यौन क्रियाओं के अलावा आंत से जुड़ी गतिविधियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यही नहीं, यह हमारी रीढ़ की हड्डी और पेट के विभिन्न अंगों को भी सपोर्ट करता है। फिजियोथेरेपिस्ट ‘ट्रिगर प्वॉइंट रिलीज’ तकनीक के इस्तेमाल से प्रभावित हिस्से का मसाज कर मरीज को इस दर्द से राहत दिलवाते हैं।
अधिक जानकारी के लिए हमारे विशेषज्ञ से संपर्क करे:
डॉ. बृजेश कुमार बाँसीवाल, 
एम.पी.टी. (आर्थोपेडिक)
मुख्य फिजियोथेरेपिस्ट
पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और पुनर्वास केंद्र, पृथासावी हॉस्पिटल, जगतपुरा रेलवे फ्लाईओवर ब्रिज के पास,  जगतपुरा, जयपुर
मोबाइल: 9414990102

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

बिना दवा के राहत पाइए फिजियोथेरेपी के जरिए

बिना दवा के राहत पाइए फिजियोथेरेपी के जरिए
अगर आफ शरीर के किसी हिस्से में दर्द है और आप दवाइयां नहीं लेना चाहते तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। फिजियोथेरेपी की सहायता लेने पर आप दवा का सेवन किए बिना अपनी तकलीफ दूर कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह अत्यंत आवश्यक है। व्यायाम के जरिए मांसपेशियों को सक्रिय बनाकर किए जाने वाले इलाज की विधा फिजियोथेरेपी कहलाती है चूंकि इसमें दवाइयां नहीं लेना पडतीं इसलिए इनके दुष्प्रभावों का प्रश्न ही नहीं उठता। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि फिजियोथेरेपी तब ही अपना असर दिखाती है जब इसे समस्या दूर होते तक नियमित किया जाए। फिजियोथेरेपिस्ट श्रवण कुमार कहते हैं कि क* बार लोग छोटी मोटी समस्या को गंभीरता से नहीं लेते और जब वे फिजियोथेरेपी के लिए आते हैं तब तक समस्या बढ चुकी होती है। उन्होंने कहा कि पैर में मोच आने पर यदि समय रहते उसकी फिजियोथेरेपी हो जाए तो समस्या जल्द ही ठीक हो जाती है। अन्यथा मोच की तकलीफ बहुत ही धीरे-धीरे ठीक होती है। अगर ठंड का मौसम है तब तो मरीज बहुत परेशान होता है।
श्रवण कहते हैं- लेकिन ७५ से ८० फीसदी लोग मानते हैं कि मोच का दर्द अपने आप या को* पेन रिलीवर लगाने पर ठीक हो जाएगा। इसी तरह बांह की तकलीफ को लोग यह सोच कर टाल जाते हैं कि हाथ सोते समय दब गया होगा। बांह की तकलीफ इतनी बढ सकती है कि आपका दैनिक कामकाज बाधित हो सकता है जबकि समय रहते फिजियोथेरेपी से यह दर्द दूर किया जा सकता है।
फिजियोथेरेपिस्ट कर्नल एसएस यादव बताते हैं कि अलग-अलग बीमारी के लिए अलग-अलग प्रकार की फिजियोथेरेपी होती है। को* भी फिजियोथेरेपी समय लेती है और इसमें काफी धैर्य की जरूरत होती है। कार्डियोवस्कुलर और पल्मोनरी थेरेपी उन लोगों के लिए होती है जिनका हश्दय का या पल्मोनरी धमनी का आपरेशन हुआ हो। लेकिन इसमें विशेष सावधानी बरतनी पडती है। उन्होंने बताया कि जेरिएट्रिक फिजियोथेरेपी बुजुर्गों के लिए होती है। इससे उन मरीजों को मदद मिलती है जो वश्द्ध होते हैं और अर्थराइटिस, ओस्टियोपोरोसिस, कैंसर, अल्झाइमर, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट, बैलेंस डिस्आर्डर आदि से पीडत होते हैं और उनके लिए चलना फिरना, अपना काम करना मुश्किल हो जाता है। न्यूरोलोजिकल थेरेपी में तंत्रिका संबंधी विकशितयों के शिकार मरीजों की थेरेपी की जाती है। खास कर अल्झाइमर, एएलएस, मस्तिष्क, सेरिब्रल पल्सी, मल्टीपल स्क्लीरोसिस, स्पाइनल कार्ड, स्ट्रोक आदि के मरीज इस थेरेपी का लाभ उठाते हैं।

बहरापन, दशिष्ट संबंधी विकार, बोलने की समस्या आदि का भी इलाज न्यूरोलोजिकल थेरेपी से हो सकता है। लकवे के मरीजों के लिए यह थेरेपी खास तौर पर उपयोगी है। फिजियोथेरेपिस्ट यादव के अनुसार आथरेपेडिक थेरेपी में मांसपेशियो और हड्डियों की थेरेपी की जाती है। यह थेरेपी फ्रैक्चर, खेल के दौरान लगी चोटों, अर्थराइटिस, मांसपेशियों के खिंचाव, पीठ या गर्दन के दर्द, रीढ की हड्डी की तकलीफ, जोडों में दर्द, टूटे हुए लिगामेंट्स आदि के इलाज में उपयोग होती है। फिजियोथेरेपिस्ट श्रवण के अनुसारए यह धारणा सही नहीं है कि फिजियोथेरेपी अपने आप ही की जा सकती है। एक फिजियोथेरेपिस्ट पहले मरीज की पूरी केस हिस्ट्री पूछता है और उसके अनुसार फिजियोथेरेपी कराता है। इसलिए बिना फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह लिए इसे नहीं करना चाहिए। फिजियोथेरेपिस्ट यादव कहते हैं कि समय रहते फिजियोथेरेपी समस्या दूर कर सकती है अन्यथा आपकी तकलीफ आपको महंगी पड सकती है। क* बार तो तकलीफ लाइलाज भी हो जाती है।

फिजियोथेरेपी में नियमितता है जरूरी है

फिजियोथेरेपी में नियमितता है जरूरी
फिजियोथेरेपी आजकल उपचार की एक प्रमुख विधि के रूप में लोकप्रिय हो रही है। खासकर सर्द या बदलते मौसम में फिजियोथेरेपी कराने वाले लोगों को कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए।
फिजियोथेरेपी ऐसी चिकित्सा पद्घति है, जिसमें दवाओं, इंजेक्शन और ऑपरेशन की आवश्यकता तो नहीं पड़ती, पर नियमितता और संयम काफी मायने रखते हैं। फिर चाहे मौसम सर्द हो या मौसम में बदलाव आ रहा हो।
उपचार प्रक्रिया
फिजियोथेरेपी में मशीनों की सहायता से यानी इलेक्ट्रो थेरेपी से रोग में राहत दिलायी जाती है। मशीनों में प्रमुख तौर पर टेंस, ट्रैक्शन, आईएफटी, लेजर, अल्ट्रासोनिक आदि मशीनों का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा कुछ उपचार में वैक्स पद्घति का भी उपयोग होता है। इसकी उपचार पद्घति व्यायाम पर भी केंद्रित रहती है। डॉंक्टर रोग के लक्षणों की जांच कर उसके अनुरूप व्यायाम और उपकरणों की मदद निर्धारित करते हैं। उपचार के लिए मरीजों को कई दिनों अथवा कई सप्ताह तक डॉंक्टर की देखरेख में व्यायाम करना होता है। जो लोग दवाओं, इंजेक्शन, ऑपरेशन आदि से कतराते हैं, उनके लिए यह पद्घति काफी लाभदायक है, क्योंकि इसमें इलाज इन सबसे परे है।
किस मौसम में कारगर 
मौसम परिवर्तन के समय मांसपेशियों और जोड़ों में अकड़न बढ़ जाती है। ऐसे में उन लोगों की मुश्किल अधिक बढ़ जाती है, जिन्हें इनसे संबंधित कोई परेशानी हो। इसलिए फिजियोथेरेपी द्वारा इलाज का महत्व बढ़ जाता है। अमूमन स्पॉन्डिलाइटिस, पार्किंसन और आर्थराइटिस वालों को इस मौसम में अधिक परेशानी होती है। इस उपचार प्रक्रिया से सकारात्मक असर होता है। 
इलाज में नियमितता
इस बात में दो राय नहीं कि इसमें दवा की जरूरत नहीं होती, पर इस प्रक्रिया से इलाज करवाते समय संयम रखना और नियमित रूप से उपचार करवाना अनिवार्य होता है। फ्रोजन शोल्डर जैसे रोगों से ग्रस्त लोगों के लिए यह नियमितता और भी जरूरी है। इस उपचार में फिजियोथेरेपी सेंटर जाकर उपचार करवाना पड़ता है या फिजियोथेरेपिस्ट घर पर आकर इलाज करता है।

क्या है इसकी विशेषता
वैसे तो फिजियोथेरेपी चिकित्सा कई तरह के रोगों में लाभदायक है, पर यह रोगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि चोट, फ्रैक्चर इत्यादि के उपचार में भी कारगर है। विशेष रूप से स्पोर्ट्स में और जिम आदि जाने वालों को होने वाली भीतरी चोटों के उपचार में। यहां तक कि मोच में भी फिजियोथेरेपी से काफी राहत मिलती है। इसके अतिरिक्त किसी प्रकार की सर्जरी के बाद भी शरीर के अंगों की कार्यशीलता बनाए रखने के लिए फिजियोथेरेपी की सहायता ली जाती है।
(मेदांता- द मेडिसिटी की फिजियोथेरेपी प्रमुख डॉं. कल्पना अग्रवाल से श्रुति की बातचीत पर आधारित)

बुधवार, 19 अगस्त 2015

दवाएं नहीं फिजियोथैरेपी देगी पूरी राहत


Pinkcity Physiotherapy & Rehabilitation Center , JAGATPURA, JAIPUR

जगतपुरा रेलवे ओवर ब्रिज के पास, जगतपुरा, जयपुर
दवाएं नहीं फिजियोथैरेपी देगी पूरी राहत
              फिजियोथैरेपी यानी शरीर की मांसपेशियों, जोड़ों, हड्डियों-नसों के दर्द या तकलीफ वाले हिस्से की वैज्ञानिक तरीके से एक्सरसाइज के माध्यम से मरीज को आराम पहुंचाना। हालांकि अधिकतर लोग मानते हैं कि केवल योगा और कुछ कसरतें ही फिजियोथैरेपी होती हैं लेकिन ऎसा नहीं है। फिजियोथैरेपी में विशेषज्ञ कई तरह के व्यायाम और नई तकनीक वाली मशीनों की मदद से इलाज करते हैं। आज की जीवनशैली में हम लंबे समय तक अपनी शारीरिक प्रणालियों का सही ढंग से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं और जब शरीर की सहनशीलता नहीं रहती है तो वह तरह-तरह की बीमारियों व दर्द की चपेट में आ जाता है। दवाइयां तात्कालिक राहत देती हैं। लेकिन लंबे समय तक इन्हें लेना सुरक्षित नहीं माना जाता है। फिजियोथैरेपिस्ट डॉ. बृजेश कुमार बता रहे हैं कि हम किस तरह फिजियोथैरेपी को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाकर दवाइयों पर निर्भरता कम करके स्वस्थ रह सकते हैं।
इन तकलीफों में कारगर:
        लाइफस्टाइल संबंधी परेशानी (मोटापा, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज), क्लाइमेट चेंज से जुड़ी तकलीफें (लंबे समय तक दफ्तर के एसी में रहना, धूप के बिना रहना, लंबी सिटिंग आदि, ऎसा वातावरण जो परेशानी को बढ़ाता है), मैकेनिकल एवं ऑर्थोपेडिक डिसऑर्डर (पीठ, कमर, गर्दन, कंधे, घुटने का दर्द या दुर्घटना के कारण भी), आहार-विहार (जोड़ों का दर्द, हार्मोनल बदलाव, पेट से जुड़ी समस्याएं), खेलकूद की चोटें, ऑर्गन डिसऑर्डर, ऑपरेशन से जुड़ी समस्याएं, न्यूरोलॉजिकल बीमारियां (मांसपेशियों का खिंचाव व उनकी कमजोरी, नसों का दर्द व उनकी ताकत कम होना), चक्कर आना, कंपन, झनझनाहट, सुन्नपन और लकवा, बढ़ती उम्र संबंधी बीमारियों के कारण चलने-फिरने में दिक्कत, बैलेंस बिगड़ना, टेंशन, हैडेक और अनिद्रा में फिजियोथैरेपी को अपना सकते हैं। 
         कई बार मरीज कहते हैं कि फिजियोथैरेपी भी करवाकर देख ली, लेकिन कुछ फर्क ही नहीं पड़ा। इलाज से फायदा न हो तो देखना होता कि मरीज के साथ निम्न में से कोई स्थिति तो नहीं है। फिजिशियन या सर्जन के स्तर पर मरीज को समय रहते फिजियोथैरेपिस्ट के पास जाने की सलाह दी गई थी या नहीं।
      मरीज फिजियोथैरेपी में तब आता है जबकि ऑर्थोपेडिक और न्यूरो सर्जन की राय में उसके घुटने और कमर की डिस्क लगभग खत्म हो चुकी होती हैं।
       कमर-गर्दन दर्द : मरीज जब आता है जबकि न्यूरोफिजिशियन-सर्जन की राय में उसकी नसों की दबने से ताकत कम हो चुकी होती है।  मरीज उस स्थिति में आता है जबकि उसका केस बिगड़ या मर्ज बढ़ चुका होता है। 
200 साल से यह पद्धति अस्तित्व में है। सबसे पहले 1813 में स्वीडन में इसे जिम्नास्टिक से जुड़े विशेषज्ञों ने शुरू किया था।
1887 में इसे उपचार की आधिकारिक पद्धति के रूप में मान्यता मिली।
1916 में पोलियो फैलने के वक्त अमरीका में इसे व्यापक रूप से आजमाया गया। 
     फिजियोथैरेपी में तुरंत इलाज संभव नहीं होता। डॉ. बृजेश कुमार के अनुसार मरीज को धैर्य रखते हुए फिजियोथैरेपिस्ट के बताए अनुसार व्यायाम करने और जीवन-शैली में बदलाव लाने से न सिर्फ दीर्घकालिक लाभ होता है बल्कि एक्सरसाइज भी उसकी जीवन शैली का नियमित हिस्सा बन जाती है। ये दोनों चीजें दवारहित जीवन व बीमारियों को दूर रखने में मददगार होती हैं। यह एलोपैथी से जुड़ी हुई चिकित्सा पद्धति है।
 दवा व कसरत दोनों के मेल से फायदा होता है।
      दवा रहित उपचार जिसमें मशीनों की सहायता से मांसपेशियों को रिलेक्स कर सूजन व दर्द में राहत दी जाती है। मशीनी तरंगें दर्द वाले प्रभावित हिस्से पर सीधे काम करती हैं। इसमें ठंडा-गर्म सेक, मैकेनिकल ट्रैक्शन (खिंचाव) से  भी इलाज होता है।
     अचानक दर्द उठने पर फिजियोथैरेपिस्ट ऑर्थोपेडिक मैनुअल थैरेपी करते हैं जिसमें प्रभावित हिस्से की मांसपेशियों के खिंचाव या डिसलोकेशन को मुद्राओं का संतुलन सही करके ठीक किया जाता है। इसे अधिकतर गर्दन, कमर दर्द व खेलों से जुड़ी चोटों में आजमाया जाता है। 
     लंबे समय से तरह-तरह के दर्द या अन्य व्याधियां (क्रॉनिक डिसऑर्डर) के कारण पूर्ण रूप से दूसरों पर निर्भर मरीजों का उनकी सक्रियता व इच्छाशक्ति बढ़ाकर क्वालिटी ऑफ लाइफ के साथ जीवन जीने की समग्र सोच से उपचार किया जाता है। डॉ. बृजेश उन मरीजों के लिए हॉलिस्टिक हीलिंग थैरेपी को बेहतर परिणाम देने वाला मानते हैं जिसमें एक से ज्यादा बीमारियां, असाध्य तकलीफें या लंबे अरसे से दर्द है। इसमें एक्सरसाइज के साथ शरीर की बायो क्लॉक, दिनचर्या, खानपान का प्रबंधन और बढ़ती उम्र के बावजूद जीवन को सकारात्मकता से देखने की काउंसलिंग करके इलाज किया जाता है। काफी मामलों में तो इसके आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आए हैं जहां 60 पार की उम्र के ऎसे मरीज हैं जिन्होंने अपनी बीमारी को अंतिम सत्य मानते हुए बिस्तर पकड़ लिया था, हीलिंग पद्धति से इलाज के बाद वे खुद चलने फिरने लगे। सामान्य दिनचर्या करने लायक हो गए और अब दूसरों के सहारे बिल्कुल नहीं हैं। .
     इंटीग्रेटेड हॉलिस्टिक हीलिंग थैरेपी अंगों का संतुलन कायम करने, गतिशीलता बढ़ाने व मरीज की इच्छाशक्ति के साथ उसकी भागीदारी को शामिल करते हुए की जाती है। बढ़ती उम्र संबंधी समस्याओं व क्रॉनिक डिसऑर्डर के प्रबंधन में यह कारगर रहती है।
डॉ. बृजेश कुमार (भौतिक चिकित्सक) 
Chief Physiotherapist          
M.P.T. (Orthopedic)
Mahatma Gandhi University of Medical Sciences & Technology, Jaipur
मोबाइल  नंबर - 9414990102