Saturday, May 6, 2023

क्या होता है स्लिप डिस्क? जानें इसके लक्षण, कारण, इलाज व अन्य बातें !

क्या होता है स्लिप डिस्क? जानें लक्षण, कारण, इलाज, प्रकार, जांच एवं बचाव !

आज के इस आधुनिक दौर में, जहां हम कई सारी उपलब्ध्यिां हासिल कर चुके हैं, वहीं हमें इसके नुकसान भी उठाने पड़ रहे हैं। कंप्यूटर और मोबाइल के दौर में घंटों एक की जगह बैठे रहना या गलत अवस्था (Posture) में बैठना व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक साबित हो सकता है। जैसे कि बात की जाए कमर से जुड़ी परेशानियों की, कई लोगों में स्लिप डिस्क (Slip disc) की समस्या देखने को मिल रही है। कुछ समय पहले तक इसका प्रभाव ज़्यादातर बढ़ती उम्र में देखने को मिलता था। लेकिन आज युवा वर्ग भी इसकी चपेट में रहा है।



आखिर क्या है स्लिप डिस्क?

इसे हर्निएटेड डिस्क (herniated disk) के नाम से भी जाना जाता है। हमारी रीढ़ की हड्डी (spinal cord) शरीर के महत्त्वपूर्ण भागों में से एक है जो विभिन्न तरीकों से हमें सहायता प्रदान करती है। यह हमारे शरीर के महत्त्वपूर्ण भागों में से एक है। हमारी रीढ़ की हड्डी में कुल 33 कशेरूका (vertebrae) की उपस्थिति होती है। इन्हें सहारा देने के लिए छोटी गद्देदार डिस्क रहती हैं। ये डिस्क रबड़ की तरह होती हैं जो हमारी रीढ़ की हड्डी को झटकों से बचाने और उसे लचीला रखने में मदद करती हैं। हर डिस्क में दो तरह के भाग होते हैं। एक आंतरिक भाग जो नरम होता है और दूसरा बाहरी रिंग जो कठोर होती है। जब बाहरी रिंग कमज़ोर पड़ने लगती है तो आंतरिक भाग को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है। इसी स्थिति को स्लिप डिस्क के नाम से जाना जाता है। इस तरह की परेशानी रीढ़ की हड्डी के किसी भी भाग में उत्पन्न हो सकती है। लेकिन आमतौर पर इसका प्रभाव पीठ के निचले हिस्से में देखने को मिलता है।



स्लिप डिस्क से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदू:-

1. यह परेशानी महिलाओं के मुकाबले पुरूषों में ज़्यादा देखने को मिलती है। इसके कई कारण हो सकते हैं।
2. 30
से 50 वर्ष की आयु के लोगों में कमर के निचले हिस्से में यह समस्या आमतौर पर पाई जाती है।
3. 40
से 60 वर्ष की आयु के लोगों में गर्दन के पास सर्वाइकल वर्टिब्रा में समस्या उत्पन्न होती है।
4.
मौजूदा दौर में 20-25 वर्ष के भी कई नौजवान स्लिप डिस्क जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
5.
कई बार व्यक्ति को स्लिप डिस्क हो जाने के बाद भी लक्षण दिखाई नहीं देते।
6. 
अधिकांश मौकों पर स्लिप डिस्क का उपचार बिना सर्जरी के हो जाता है।

स्लिप डिस्क के लक्षण

अगर आपको कमर के बीच में, निचले हिस्से में कमर दर्द या फिर रीढ़ की हड्डी में दर्द हो रहा हो तो याद रखें यह स्लिप डिस्क का लक्षण हो सकता है। इसके अलावा जांघ और कूल्हों के नज़दीक सुन्न होना, झुकने या चलने में दर्द होना, पैरों की उंगली या पैर सुन्न होना, पैरों में कमज़ोरी होना, पेशाब करने में दिक्कत होना भी स्लिप डिस्क के लक्षणों में गिने जाते हैं। कभी कभी इसका असर गर्दन पर भी पड़ता है जिस वजह से गर्दन में दर्द और जलन हो जाती है। इसके साथ ही व्यक्ति के कंधों और हाथों में दर्द या हाथों की मांसपेशियों में कमज़ोरी भी सकती है।
कुछ स्लिप डिस्क के लक्षण एक से दूसरे व्यक्ति में अलग भी हो सकते हैं। लेकिन हां, याद रहे कि ऐसे समय में आप ज़्यादा समय तक तबीयत ठीक होने का इंतज़ार ना करें। अगर दर्द कुछ दिनों में नहीं जाता है तो फिजियोथेरेपिस्ट से सलाह ज़रूर लें। ऐसे समय में आप पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन सेंटर में भी परामर्श प्राप्त कर सकते हैं। हमारी बेहतरीन टीम अपनी सेवाओं के माध्यम से आपको इन परिस्थितियों में ज़रूर सहायता प्रदान करेगी।

स्लिप डिस्क के प्रकार

मुख्य रूप से स्लिप डिस्क के तीन प्रकार हैं:-

1. सर्वाइकल डिस्क स्लिप (Cervical Disk Slip)
यह गर्दन में होता है और गर्दन में दर्द के प्रमुख कारणों में से एक है। गर्दन के साथ ही कंधे की हड्डी, बांह, हाथ, और सिर के पिछले भाग में भी दर्द होता है।

2. लंबर डिस्क स्लिप (Lumbar Disk Slip)
यह डिस्क स्लिप रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में होती है और इसकी वजह से पीठ के निचले हिस्से, कूल्हे, जांघ, पैर और पैर की उंगलियों आदि में दर्द होता है।

3. थौरेसिक डिस्क स्लिप (Thoracic Disk Slip)
यह तब होती है जब रीढ़ की हड्डी के बीच के हिस्से में आस-पास दबाव पड़ता है। स्लिप डिस्क का यह प्रकार कंधे और पीठ के बीच में दर्द उत्पन्न कर देता है। इसके साथ ही कभी कभी दर्द स्लिप डिस्क की जगह से होते हुए कूल्हे, पैरों, हाथ, गर्दन, और पैर के पंजों तक भी जा सकता है।

स्लिप डिस्क के चरण

आइए अब बात करते हैं स्लिप डिस्क के कुछ चरणों की।

1. पहला चरण
जैसे जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे ही कई लोगों की डिस्क में डिहाइड्रेशन की समस्या देखने को मिल सकती है। ऐसा होने पर डिस्क में लचीलापन कम हो जाता है। अतः वह कमज़ोर होने लगती है।

2. दूसरा चरण
बढ़ती उम्र के दौरान डिस्क में रेशेदार परतों के बीच दरारें आने लगती हैं। ऐसी स्थिति में उनका भीतरी द्रव बाहर सकता है।

3. तीसरा चरण
तीसरे चरण में न्यूक्लियस (nucleus) का एक भाग टूट सकता है।

4. चौथा चरण 
इस चरण में डिस्क के भीतर का द्रव न्यूक्लियस पल्पोसस डिस्क से बाहर आना शुरू हो जाता है और इसके फलस्वरूप रीढ़ की हड्डी में रिसाव की समस्या होे जाती है।

स्लिप डिस्क के कारण

1. बढ़ती उम्र
जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है, डिस्क कमज़ोर होने लगती है। ऐसा होने पर स्लिप डिस्क होने का खतरा बढ़ जाता है।

2. जीवनशैली
देखा जा रहा है कि कई लोग गलत सीटिंग पोश्चर में बैठकर घंटों काम करते रहते हैं। ये गतिविधि स्लिप डिस्क का कारण बन सकती है। साथ ही लेट कर या झुक कर पढ़ना, अचानक झुकना, शारीरिक गतिविधि कम होना या अत्यधिक शारीरिक श्रम करना, देर तक ड्राइविंग करना, दुर्घटना में चोट लगने आदि से डिस्क पर प्रभाव पड़ सकता है।

3. कमज़ोर मांसपेशियां
अपनी मांसपेशियों को कमज़ोर ना होने दें। कमज़ोर मांसपेशियां भी स्लिप डिस्क का कारण बन सकती हैं।

4. धुम्रपान
आज के दौर में कई लोग धुम्रपान जैसी गतिविधियों को अपने जीवन का हिस्सा बना बैठे हैं। लेकिन याद रहे, धुम्रपान सेहत के लिए तो हानिकारक है ही, साथ ही ये आपके डिस्क को कमज़ोर करने में भी अपना योगदान देता है।

5. भारी वज़न उठाना
कभी-कभी अत्यधिक वज़न उठाने पर भी स्लिप डिस्क की शिकायत हो सकती है। कोशिश करें कि शरीर को घुमाते समय या फिर मुड़ते हुए ज़्यादा वज़न ना उठायें। अन्यथा यह भी स्लिप डिस्क का कारण बन सकता है।

6. मोटापा
शरीर का वज़न ज़्यादा होने पर भी स्लिप डिस्क की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

7. चोटिल डिस्क
ज्यादा वजन वाले सामान उठाने, गिरने, धक्का लगने, एकदम से कोई शारीरिक गतिविधि करने या फिर किसी तरह का व्यायाम करने से हमारी डिस्क पर दबाव पड़ सकता है। ऐसा होने पर स्लिप डिस्क की संभावना बढ़ सकती है।

स्लिप डिस्क की जांच

आपको स्लिप डिस्क है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए मुख्य रूप से कुछ टेस्ट किए जाते हैं। जैसे किः-

1. फिज़िकल टेस्ट
इस टेस्ट के दौरान डाॅक्टर आपको चलने-फिरने या फिर दौड़ने के लिए बोल सकते है। ऐसा इसलिए ताकि आपकी सामान्य गतिविधि के दौरान शारीरिक स्थिति का पता लग जाए।
2.
एक्स-रे
अगर रीढ़ की हड्डी में चोट लगी हो तो डाॅक्टर एक्स-रे के माध्यम से उसका पता लगा सकते हैं।
3.
एम.आर.आई.
इससे यह मालूम चल जाता है कि डिस्क अपनी जगह से खिसकी है या नहीं। या फिर यह जांच हो सकती है कि यह तंत्रिका तंत्र (nervous system) को किस रूप से प्रभावित कर रही है।
4.
सी.टी. स्कैन
अगर डिस्क में कोई चोट लगी है, उसके आकार या दिशा में कोई फर्क आया है तो उसे सी.टी. स्कैन के माध्यम से देखा जा सकता है।
5.
मायलोग्राम
यह एक ऐसा टेस्ट है जिसमें रीढ़ की हड्डी के भीतर एक तरल रूपी डाई इंजेक्ट किया जाता है। उसे इंजेक्ट करने के बाद एक्स-रे किया जाता है और यह पता लगाया जाता है कि रीढ़ की हड्डी या नसों पर किस तरह का दबाव पड़ रहा है।



स्लिप डिस्क का इलाज

स्लिप डिस्क का इलाज व्यक्ति की समस्या पर आधारित रहता है, जैसे कि डिस्क कितनी स्लिप हुई है। आमतौर पर कुछ तरह के इलाज प्रसिद्ध हैं, जैसे किः

1. फिज़ियोथैरेपी
कुछ व्यायाम (exercise) के माध्यम से स्लिप डिस्क के दर्द को कम करने में सहायक होते हैं। ऐसे समय पर आप पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन सेंटर से संपर्क कर सकते हैं। हमारे फिजिकल थैरेपी ट्रैनर आपको कुछ ऐसे व्यायामों से परिचित कराएंगे जो कि आपकी कमर एवं नज़दीकी मांसपेशियों को मजबूत करने में सहायक होंगे।

2. दवाईयां
कुछ मौकों पर मांसपेशियों के खिंचाव को दूर करने के लिए डाॅक्टर दवाईयों से उपचार कर सकते हैं। इन दवाइयों से केवल सिम्प्टोमैटिक राहत ही होती हैं।

3. ओपन सर्जरी
अगर मरीज़ को व्यायाम और दवाई लेने के महीने भर बाद भी आराम नहीं मिलता है तो डाॅक्टर हालात को देखते हुए सर्जरी की मदद ले सकते हैं। जैसे कि एक सर्जरी है जिसे माइक्रोडिस्केटाॅमी कहा जाता है। इसमें पूरी डिस्क को निकालने के बजाय सिर्फ क्षतिग्रस्त भाग को निकाल दिया जाता है। इससे व्यक्ति को झुकने और अन्य कार्य में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता और इसके माध्यम से रीढ़ की हड्डी में पहले जैसा लचीलपन जाता है।
इसके अलावा कुछ अन्य सर्जरी जैसे स्पाइनल फ्यूजन और लेमिनेक्टाॅमी का प्रयोग भी स्लिप डिस्क के इलाज के लिए किया जा सकता है।

4. मिनिमली इन्वेसिव सर्जरी
यह आमतौर पर होने वाली सर्जरी से भिन्न होती है। इसमें छोटे चीरे के माध्यम से सर्जरी की जा सकती है। इसके साथ ही इस तरह की सर्जरी को ओपन नेक और बैक सर्जरी के मुकाबले सुरक्षित और प्रभावकारी माना जाता है।

स्लिप डिस्क से बचाव

स्लिप डिस्क को पूर्ण रूप से बचाना बेहद कठिन है, लेकिन अगर आप कोशिश करें तो इसके होने का खतरा कम कर सकते हैं। नीचे दिए गए कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं के माध्यम से समझें।

1. जब भी वज़न उठाएं, सावधानी बरतें। वज़न भारी होने के दौरान पीठ के बल उठाने के बजाय घुटनों को मोड़ कर वज़न उठाएं।
2. 
अपने शरीर को संतुलित वज़न में रखें। शरीर का वज़न भारी होने पर विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
3. 
जितना हो सके नियमित तौर पर व्यायाम करें। अपनी मांसपेशियों को मज़बूती प्रदान करने वाले व्यायामों पर खासतौर से ध्यान दें।
4. 
व्यायाम के साथ यह ज़रूरी है कि आपका भोजन संतुलित और पौष्टिक हो। स्लिप डिस्क के जोखिम को कम करने के लिए ऐसे आहार लें जिसमें विटामिन सी, डी, , प्रोटीन, और कैल्शियम की मात्रा हो। साथ ही हरी सब्ज़ियों और मौसमी फल का भी सेवन ज़रूर करें। अधिक जानकारी के लिए  पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन सेंटर के अनुभवी डाॅक्टर्स से संपर्क करें।
5. 
ज़्यादा देर तक एक ही पाॅजिशन में ना बैठें। अगर आप कंप्यूटर के सामने बैठते हैं तो कोशिश करें थोड़े समय में उठकर सीधे खड़े हो जाएं, कुछ कदम घूम लें, या मुमकिन हो तो थोड़ी स्ट्रेचिंग करलें।
6. 
सोते समय सही गद्दे और बिस्तर चुनें और अपनी पीठ को सही स्थिति में रखें।
7. 
ऊंची हील्स या फ्लैट चप्पल पहनने से बचें। हाई हील्स के फुटवियर पहनने के कारण कमर पर दबाव पड़ता है। और बात की जाए फ्लैट चप्पल की, तो इसे पहनने से पैरों के आर्च को क्षति पहंुच सकती है।
8. 
आयोजनों या अन्य किसी जगह पर एक ही स्थिति में ज़्यादा देर तक खड़े ना रहें। बैठते और काम करते समय अपनी पीठ को सीधा रखें।

स्लिप डिस्क के बारे में भ्रांतियां

आजकल की जीवन शैली को देखते हुए स्लिप डिस्क एक ऐसी समस्या है जिसमें शरीर की सारी फिजिकल गतिविधियां अवरुद्ध हो जाती है। यहां पर यह बात ध्यान रखने योग्य है कि स्लिप डिस्क एक मैकेनिकल समस्या है ना की बीमारी जिसे दवाइयों से ठीक नही किया जा सकता है। इसमें शारीरिक पोस्चर, व्यायाम आदि का अहम रोल है, स्वंय की लाइफ स्टाइल को बदलना होता है।


आमतौर पर स्लिप डिस्क को 2 कैटेगरी में बाँटा गया है।

1.एक्यूट कंडीशन

2.क्रोनिक कंडीशन

1.एक्यूट कंडीशन- स्लिप डिस्क की इस कंडीशन के दौरान स्पाइन की डिस्क गलत पोजिशन, गिरने और मोटापे के वजन से पिचक जाती है, पिचकी हुई डिस्क का कुछ हिस्सा स्पाइन की अस्थि से बाहर निकल जाता है, जिससे पास में गुजर रहे नर्व रुट पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे मरीज की स्पाइन में असहनीय दर्द होता है। स्पाइन के चारों तरफ सूजन और गर्मास पैदा हो जाती है इसके चलते संबंधित जगह पर सप्लाई करने वाली नसों व मासपेशियों में कमजोरी और सुन्नपन आ जाता है। स्लिपडिस्क वाले पॉइंट पर छूने, दबाने और मूवमेंट करने पर असहनीय दर्द होता है। कमर के दर्द के कारण मरीज का शरीर आगे की तरफ झुक जाता है। एक्यूट कंडीशन में सबसे पहले फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह के अनुसार ईलाज लिया जाता है जिससे रिकवरी की संभावनाएं काफी बढ़ जाती है। एक्यूट कंडीशन में 7 दिनों तक रेस्ट किया जाता है। रेस्ट के दौरान कुछ शारीरिक स्थितियां होती है जिनको ध्यान रखना होता है इन सभी रेस्ट की स्थितियों का ज्ञान केवल निपुण फिजियोथेरेपिस्ट को ही होता है। रेस्ट के दौरान संबंधित पॉइंट पर थेराप्यूटिक अल्ट्रासाउंड लगवाना बहुत जरूरी हैं जिससे सॉफ्ट टिश्यू की रिकवरी तेज हो जाती है। आमतौर पर लोगों की भ्रांतियां होती है कि फिजियोथेरेपिस्ट तो केवल एक्सरसाइज का डॉक्टर है मगर यह गलत है, फिजियोथेरेपिस्ट शरीर की सभी सक्रिय गतिविधियों का ज्ञान रखता है। एक्यूट कंडीशन में अगर मरीज को सही ईलाज मिल जाता है तो उसके कमर की डिस्क के अपनी जगह पर सेट होने की संभावनाये काफी बढ़ जाती है। एक्यूट कंडीशन में मरीज को रेस्ट के साथ साथ इलेक्ट्रो थेरेपी और बर्फ का सेक भी किया जाता है, जिससे सूजन व दर्द कम हो जाता है।

2. क्रोनिक कंडीशन- अगर एक्यूट कंडीशन में ईलाज सही से नहीं मिल पाता है तो कुछ दिनों बाद मरीज की स्पाइन के चारों तरफ मांसपेशियों में अकड़न या ऐठन बढ़ जाती है मांसपेशियों में तनाव आ जाता है इसके चलते नसों पर दबाव पहले से अधिक बढ़ जाता है, इसे क्रोनिक कंडीशन ऑफ स्लिप डिस्क कहा जाता है। क्रोनिक कंडीशन के दौरान स्पाइन डिस्क के स्लिप होने से रिक्त हुई जगह पर एबनॉर्मल टिश्यू या केलश बन जाता है जिससे स्पाइन की डिस्क अपनी जगह पर जाम होने लगती है, इसी कारण से डिस्क का पुनः अपनी जगह पर सेट होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती है। और अंत में स्पाइन का ऑपरेशन करना जरूरी हो जाता है। यहां पर यह बात जानना जरूरी है कि ऑपरेशन के बाद भी स्पाइन की मांसपेशियों की स्टेबिलिटी के लिए फिजियोथैरेपी बहुत जरूरी है जिससे दूसरी वर्टिब्रा में स्लिप डिस्क ना हो सके।

अपना ध्यान रखें

पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन सेंटर के माध्यम से आपने स्लिप डिस्क से जुड़ी कई अहम बातें पढ़ी। हमारा आपसे यही अनुरोध है कि दी गई बातों पर गौर करें और ऐसी गतिविधियों से बचें जिससे आपको परेशानी का सामना करना पड़े। अगर रीढ़ की हड्डी या स्लिप डिस्क से जुड़ी समस्या कुछ समय बाद तक ना जाएं, तो ये बेहतर रहेगा कि आप हमारे डाॅक्टर्स से संपर्क करें।

पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन सेंटर राजस्थान में अपनी बेहतरीन सुविधाओं के लिए जाना जाता है। हमारी टीम में बेहतरीन फिजियोथेरेपिस्ट हैं जो आपकी मदद के लिए तैयार है। इसलिए घबराएं नहीं, समय पर परामर्श लें। स्लिप डिस्क के अलावा भी अन्य किसी सहायता के लिए आप हमारे सेन्टर पर सकते हैं। साथ ही अगर आपको फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन सेंटर से जुड़ी कोई जानकारी प्राप्त करनी है, तो हमारी हैल्पलाइन नंबर, मैल सुविधा और आनलाइन चैट सुविधा उपलब्ध है।

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अपने ट्रीटमेंट्स से जुड़े सवाल पूछने के लिए आज ही देश की सर्वश्रेष्ठ फिजियोथेरेपिस्ट टीम से बात करें।

डॉ. बृजेश कुमार बंसीवाल

एम.पी.टी. (आर्थोपेडिक)

महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल, जयपुर

मुख्य फिजियोथेरेपिस्ट

शाखा जगतपुरा- पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन सेंटरपृथासावी हॉस्पिटल, जगतपुरा रेलवे फ्लाईओवर ब्रिज के पासजगतपुरा, जयपुर, राजस्थान 302017

शाखा प्रताप नगर- पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन सेंटर, 36/3, टोंक रोड, हल्दीघाटी मार्ग, पावर हाउस के सामने, सेक्टर 3, सांगानेर, सेक्टर 3, प्रताप नगर, जयपुर, राजस्थान 302033

मोबाइल: 9414990102

 

वेबसाइट:

https://pinkcityphysio.blogspot.com

 

 

1 comment:

  1. *पिंकसिटी फिजियोथेरेपी एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर*

    राजस्थान का एक मात्र ट्रेडमार्क और ISO सर्टिफाइड फिजियोथेरेपी सेंटर

    शाखा-1 : 10-अ, बृज विहार विस्तार, प्रथासावी अस्पताल, जगतपुरा रेलवे पुलिया के पास, जगतपुरा, जयपुर
    ओपीडी का समय : 09:00AM – 01:00PM | 05:00PM – 08.00PM (रविवार शाम का अवकाश)
    https://g.co/kgs/ZhoUuv

    शाखा-2 : 36/3, सेक्टर-3, हल्दीघाटी चौराहे के पास, टोंक रोड़ हल्दीघाटी मार्ग, प्रताप नगर, जयपुर
    ओपीडी का समय : 08:00AM – 11:00AM | 06:00PM – 08.00PM (रविवार शाम का अवकाश)
    https://g.co/kgs/AZH7DK

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    https://pinkcityphysio.blogspot.com

    हमारे मुख्य परामर्शक फिजियोथेरेपिस्ट

    *डॉ. बृजेश बंसीवाल*
    BPT Batch 2006-07
    महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज, जयपुर सम्बद्ध
    राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, जयपुर

    MPT (Orthopedic) Batch 2017-18
    महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज, जयपुर सम्बद्ध
    महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंस एंड टेक्नोलॉजी, जयपुर

    10 साल से अधिक का अनुभव
    जीवन रेखा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जगतपुरा (2013-14)
    डी एस आर मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल,जगतपुरा (2014-17)
    प्रथासावी अस्पताल, जगतपुरा, जयपुर (2017-23)

    मोबाइल 9414990102

    *डॉ. विकास बंसीवाल*
    BPT Batch 2013-14
    जयपुर फिजियोथेरेपी कॉलेज सम्बद्ध
    राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, जयपुर
    4 साल का अनुभव
    प्रथासावी अस्पताल, जगतपुरा, जयपुर
    मोबाइल 9887144422

    *फिजियोथेरेपी उपचार ओपीडी पैकेज*
    1 विज़िट = 250 रुपये मात्र
    30% छूट के साथ 30 विजिट = 5250 रुपये
    20% छूट के साथ 15 विजिट = 3000 रुपए
    10% छूट के साथ 10 विजिट = 2250 रुपये
    150 रुपये की छूट के साथ 7 विजिट = 1600 रुपये
    100 रुपये की छूट के साथ 5 विजिट = 1150 रुपये

    *फिजियोथेरेपी होम विजिट पैकेज*
    1 विजिट= मात्र 400 रूपये
    25% छूट के साथ 30 विजिट = 9000 रुपये
    15% छूट के साथ 15 विजिट = 5100 रुपये
    10% छूट के साथ 10 विजिट = 3600 रुपये
    5% छूट के साथ 5 विजिट = 1900 रुपये

    _सभी फिजियोथेरेपी विजिट पैकेज अग्रिम भुगतान पर लागू हैं_

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