Dr. Brijesh Bansiwal — 14+ yrs of trusted physiotherapy care.
BPT & MPT (Ortho) from MG Medical College, Jaipur. Thousands of patients benefited through scientific assessment, manual therapy, post-surgical rehab, spine care and chronic pain treatment.
Founder, Pinkcity Physiotherapy & Rehabilitation Center (Jagatpura & Pratap Nagar).
Known for patient-specific diagnosis, evidence-based care and clear communication.
Contact: 9414990102
कार्डियो-पल्मोनरी फिजियोथैरेपी- कार्डियो-पल्मोनरीथेरेपिस्ट फेफड़ों की बीमारियों के रोगियों को बेहतर सांस लेने और
सांस फूलने, खांसी और सांस लेने में तकलीफ से राहत दिलाने में सक्षम होते
है ।
स्त्री रोग फिजियोथेरेपी:-स्त्री रोग फिजियोथेरेपी प्रसूतिदेखभालमेंएकमहत्वपूर्णभूमिकानिभातीहैजिसमेंप्रसवपूर्वऔरप्रसवोत्तरदोनोंसेवाएंशामिलहैं।आसनसंबंधीशिक्षाकेसाथसंयुक्तमैनुअलतकनीकेंगर्भवतीमहिलाओंकेलिएअद्भुतकामकरतीहैं।निचलीऔरऊपरीपीठकीदेखभालऔरदैनिकगतिविधियोंकेस्वस्थसंशोधनमेंविशेषज्ञतावालेफिजियोथेरेपिस्टइष्टतमआसनहैंजिससेगर्भवतीमाताओंमेंमांसपेशियों
का तनावकमहोजाताहै।
आजकल की जीवन शैली को देखते हुए स्लिप डिस्क एक ऐसी समस्या है जिसमें शरीर की सारी फिजिकल गतिविधियां अवरुद्ध हो जाती है। यहां पर यह बात ध्यान रखने योग्य है कि स्लिप डिस्क एक मैकेनिकल समस्या है ना की बीमारी जिसे दवाइयों से ठीक नही किया जा सकता है। इसमें शारीरिक पोस्चर, व्यायाम आदि का अहम रोल है, स्वंय की लाइफ स्टाइल को बदलना होता है।
आमतौर पर स्लिप डिस्क को 2 कैटेगरी में बाँटा गया है।
1.एक्यूट कंडीशन
2.क्रोनिक कंडीशन
1.एक्यूट कंडीशन- स्लिप डिस्क की इस कंडीशन के दौरान स्पाइन की डिस्क गलत पोजिशन, गिरने और मोटापे के वजन से पिचक जाती है, पिचकी हुई डिस्क का कुछ हिस्सा स्पाइन की अस्थि से बाहर निकल जाता है, जिससे पास में गुजर रहे नर्व रुट पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे मरीज की स्पाइन में असहनीय दर्द होता है। स्पाइन के चारों तरफ सूजन और गर्मास पैदा हो जाती है इसके चलते संबंधित जगह पर सप्लाई करने वाली नसों व मासपेशियों में कमजोरी और सुन्नपन आ जाता है। स्लिपडिस्क वाले पॉइंट पर छूने, दबाने और मूवमेंट करने पर असहनीय दर्द होता है। कमर के दर्द के कारण मरीज का शरीर आगे की तरफ झुक जाता है। एक्यूट कंडीशन में सबसे पहले फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह के अनुसार ईलाज लिया जाता है जिससे रिकवरी की संभावनाएं काफी बढ़ जाती है। एक्यूट कंडीशन में 7 दिनों तक रेस्ट किया जाता है। रेस्ट के दौरान कुछ शारीरिक स्थितियां होती है जिनको ध्यान रखना होता है इन सभी रेस्ट की स्थितियों का ज्ञान केवल निपुण फिजियोथेरेपिस्ट को ही होता है। रेस्ट के दौरान संबंधित पॉइंट पर थेराप्यूटिक अल्ट्रासाउंड लगवाना बहुत जरूरी हैं जिससे सॉफ्ट टिश्यू की रिकवरी तेज हो जाती है। आमतौर पर लोगों की भ्रांतियां होती है कि फिजियोथेरेपिस्ट तो केवल एक्सरसाइज का डॉक्टर है मगर यह गलत है, फिजियोथेरेपिस्ट शरीर की सभी सक्रिय गतिविधियों का ज्ञान रखता है। एक्यूट कंडीशन में अगर मरीज को सही ईलाज मिल जाता है तो उसके कमर की डिस्क के अपनी जगह पर सेट होने की संभावनाये काफी बढ़ जाती है। एक्यूट कंडीशन में मरीज को रेस्ट के साथ साथ इलेक्ट्रो थेरेपी और बर्फ का सेक भी किया जाता है, जिससे सूजन व दर्द कम हो जाता है।
2. क्रोनिक कंडीशन- अगर एक्यूट कंडीशन में ईलाज सही से नहीं मिल पाता है तो कुछ दिनों बाद मरीज की स्पाइन के चारों तरफ मांसपेशियों में अकड़न या ऐठन बढ़ जाती है मांसपेशियों में तनाव आ जाता है इसके चलते नसों पर दबाव पहले से अधिक बढ़ जाता है, इसे क्रोनिक कंडीशन ऑफ स्लिप डिस्क कहा जाता है। क्रोनिक कंडीशन के दौरान स्पाइन डिस्क के स्लिप होने से रिक्त हुई जगह पर एबनॉर्मल टिश्यू या केलश बन जाता है जिससे स्पाइन की डिस्क अपनी जगह पर जाम होने लगती है, इसी कारण से डिस्क का पुनः अपनी जगह पर सेट होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती है। और अंत में स्पाइन का ऑपरेशन करना जरूरी हो जाता है। यहां पर यह बात जानना जरूरी है कि ऑपरेशन के बाद भी स्पाइन की मांसपेशियों की स्टेबिलिटी के लिए फिजियोथैरेपी बहुत जरूरी है जिससे दूसरी वर्टिब्रा में स्लिप डिस्क ना हो सके।