कब और क्यों ज़रूरी है फिजियोथेरेपी ?
अधिकांश लोग जागरूकता की कमी के कारण फिजियोथेरेपी को ‘एक और’
वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति से ज्यादा महत्व नहीं देते। कुछ इसके दायरे को
मसाज तक सीमित कर देते हैं, तो कुछ इसे खेल के दौरान लगने वाली चोट को ठीक
करने के लिए उपयोगी मानते हैं। पर फिजियोथेरेपी की उपयोगिता इससे कहीं
ज्यादा है। क्यों और कब जरूरी है फिजियोथेरेपी बता रहे है-
अगर दवा, इंजेक्शन और ऑपरेशन के बिना दर्द
से राहत पाना चाहते हैं तो फिजियोथेरेपी के बारे में सोचना चाहिए।
चिकित्सा और सेहत दोनों ही क्षेत्रों के लिए यह तकनीक उपयोगी है। पर जागरूकता की कमी व खर्च बचाने की चाह में लोग दर्द निवारक दवाएं लेते रहते
हैं। मरीज तभी फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाते हैं, जब दर्द असहनीय हो जाता
है।
फिजियोथेरेपी में न्यूरोलॉजी, हड्डी,
हृदय, बच्चों व वृद्धों की समस्याओं के क्षेत्र से जुड़े खास एक्सपर्ट भी
होते हैं। आमतौर पर फिजियोथेरेपिस्ट ईलाज शूरू करने से पहले बीमारी का पूरा
इतिहास देखते हैं। उसी के अनुसार आधुनिक इलेक्ट्रोथेरेपी (जिसमें इलाज के
लिए करेंट का इस्तेमाल किया जाता है) और स्ट्रेचिंग व व्यायाम की विधि
अपनाई जाती है। मांसपेशियों और जोड में के दर्द से राहत के लिए
फिजियोथेरेपिस्ट मसाज का भी सहारा लेते हैं।
नियमित हो इलाज
फिजियोथेरेपी से कुछ दर्द में तो तुरंत
आराम मिलता है, पर स्थायी परिणाम के लिए थोड़ा वक्त लग जाता है। दर्द
निवारक दवाओं की तरह इससे कुछ ही घंटों में असर नहीं दिखाई देता। खासकर
फ्रोजन शोल्डर, कमर व पीठ दर्द के मामलों में कई सिटिंग्स लेनी पड़ सकती
हैं। कई मामलों में व्यायाम भी करना पड़ता है और जीवनशैली में बदलाव भी।
इलाज की कोई भी पद्धति तभी कारगर साबित होती है, जब उसका पूरा कोर्स किया
जाए। फिजियोथेरेपी के मामले में यह बात ज्यादा मायने रखती है।
घुटनों का हो जब बुरा हाल
हाल ही में जारी यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न
ओनटेरियो की एक रिपोर्ट के मुताबिक गठिया से ग्रस्त घुटनों के इलाज में
फिजियोथेरेपी, ऑथरेस्कोपी सर्जरी जितनी ही कारगर है। शोध में शामिल
ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. रॉबर्ट लिचफील्ड के अनुसार फिजियोथेरेपी में दर्द की
मूल वजहों को तलाशकर उस वजह को ही जड़ से खत्म कर दिया जाता है। मसलन यदि
मांसपेशियों में खिंचाव के कारण घुटनों में दर्द है तो स्ट्रेचिंग और
व्यायाम के जरिये इलाज किया जाता है, पर यदि पैरों के खराब संतुलन की वजह
से दर्द हो रहा है तो फिजियोथेरेपिस्ट ऑर्थोटिक्स शू (विशेष प्रकार के
जूते, जो पैरों को एक सीध में करता है) पहनने की सलाह देते हैं।
अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि घुटनों
के दर्द से निजात पाने में सर्जरी के 80 फीसदी मामले व्यायाम व
फिजियोथेरेपी की कमी के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाते। कई मामलों में
कूल्हे व घुटने के प्रत्यारोपण व फ्रैक्चर के बाद उनके रिहैबिलिटेशन में भी
फिजियोथेरेपी लेने की सलाह दी जाती है। चिकित्सक भी कई मामलों में
फिजियोथेरेपी जरूरी मानते हैं।
सिखाता है सांस लेने की कला
फिजियोथेरेपी का दायरा सिर्फ मांसपेशियों
और हड्डियों तक सीमित नहीं है। इसकी सीमा में वो तंत्रिकाएं भी आती हैं जो
हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को नियंत्रित करती हैं। उदाहरण के तौर पर
अस्थमा या किसी भी तरह के सांस के रोगों को ही लें। कार्डियोवस्कुलर
फिजियोथेरेपिस्ट इस तरह के मरीजों को सांस रोकने और छोड़ने वाले व्यायाम या
गुब्बारे फुलाने जैसे अभ्यास के जरिये ठीक करता है। वास्तव में इसके जरिये
कार्डियोवस्कुलर फिजियोथेरेपिस्ट गर्दन और छाती की मांसपेशियों की
स्ट्रेचिंग करवाते हैं, जिससे वो और मजबूत बनते हैं।
असहनीय दर्द में भी दे आराम
डेनमार्क में हुए एक शोध के अनुसार
फिजियोथेरेपी ऑस्टियोपोरोसिस या किसी अन्य फ्रैक्चर में होने वाले दर्द से
भी राहत दिला सकती है। दरअसल, फिजियाथेरेपिस्ट व्यायाम की मदद से दर्द के
आसपास वाली मांसपेशियों और जोडमें को मजबूत बना देते हैं, जिससे लंबे समय
में दर्द खत्म हो जाता है। फिजियोथेरेपिस्ट कुछ व्यायाम करवाने के साथ-साथ
विशेष प्रकार के जूते पहनने की भी सलाह देते हैं, जिसे पहनने के बाद दर्द
के बावजूद मरीज आसानी से चल-फिर सकता है। यह तरीका ऐसे वृद्धों पर भी
आजमाया जाता है जो ज्यादा उम्र की वजह से चल नहीं पाते।
कमर में दर्द हो तो
बैठने, खड़े होने या चलने के खराब पॉस्चर
की वजह से या मांसपेशियों में खिंचाव के कारण या फिर आथ्र्राइटिस की वजह से
कमर व पीठ में दर्द बढ़ जाता है। पीठ दर्द के इलाज के लिए फिजियोथेरेपी
में कुछ सामान्य तरीके आजमाए जाते हैं। इनमें से एक है शरीर का वजन कम
करना, ताकि जोड में पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार को कम किया जा सके। दूसरा,
मांसपेशियों की मजबूती और तीसरा तरीका है, री-पैटर्निग ऑफ मसल्स यानी किसी
खास हिस्से में मांसपेशियों के पैटर्न को व्यायाम के जरिये ठीक करना। हमारी
पीठ व कूल्हे के निचले हिस्से में करीब दो दर्जन से ज्यादा मांसपेशियां
होती हैं, जिनका ठीक रहना जरूरी है।
पेल्विक डिसऑर्डर
प्रेग्नेंसी या किसी सर्जरी के बाद कई
लोगों को पेल्विक (पेट के नीचे का हिस्सा) में दर्द रहने लगता है। कुछ
लोगों को इसमें ऐंठन भी महसूस होती है। दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि
बच्चे के जन्म के बाद या सर्जरी के बाद यहां की मांसपेशियां सख्त हो जाती
हैं। पेल्विक यौन क्रियाओं के अलावा आंत से जुड़ी गतिविधियों के लिए भी
महत्वपूर्ण है। यही नहीं, यह हमारी रीढ़ की हड्डी और पेट के विभिन्न अंगों
को भी सपोर्ट करता है। फिजियोथेरेपिस्ट ‘ट्रिगर प्वॉइंट रिलीज’ तकनीक के
इस्तेमाल से प्रभावित हिस्से का मसाज कर मरीज को इस दर्द से राहत दिलवाते
हैं।
अधिक जानकारी के लिए हमारे विशेषज्ञ से संपर्क करे:
डॉ. बृजेश कुमार बाँसीवाल,
एम.पी.टी. (आर्थोपेडिक)
मुख्य फिजियोथेरेपिस्ट
पिंकसिटी फिजियोथेरेपी और पुनर्वास केंद्र, पृथासावी हॉस्पिटल, जगतपुरा रेलवे फ्लाईओवर ब्रिज के पास, जगतपुरा, जयपुर
मोबाइल: 9414990102
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